SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 462
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुंदकुंद-भारती इस प्रकार मेरे द्वारा जिनकी स्तुति की गयी है, जिन्होंने आवरणरूपी मलको नष्ट कर दिया है, जिनके जरा और मरण नष्ट हो गये हैं तथा जो जिनोंमें श्रेष्ठ हैं ऐसे चोवीस तीर्थंकर मेरे ऊपर प्रसन्न हों ।। ६ ।। ३६६ कित्तिय वंदिय महिया, एदे लोगोत्तमा जिणा सिद्धा । आरोग्गणाणलाहं, दिंतु समाहिं च मे बोहिं । ।७।। जो मेरे द्वारा कीर्तित, वंदित और पूजित हैं, लोकमें उत्तम हैं तथा कृतकृत्य हैं ऐसे ये जिनेंद्र -- चौवीस भगवान् मेरे लिए आरोग्यलाभ, ज्ञानलाभ, समाधि और बोधि प्रदान करें ।। ७ ।। चंदेहि णिम्मलयरा, आइच्चेहिं अहिय पयासंता । सायरमिव गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ।।८।। जो चंद्रोंसे अधिक निर्मल हैं, सूर्योसे अधिक प्रभासमान हैं, समुद्रके समान गंभीर हैं तथा सिद्ध पदको प्राप्त हुए हैं ऐसे चौबीस जिनेंद्र मेरे लिए सिद्धि प्रदान करें ।। ८ ।। अंचलिका इच्छामि भंते! चउवीसतित्थयर भत्तिकाउस्सग्गो कओ तस्सालोचेउं, पंच महाकल्लाणसंपण्णाणं अट्टमहापाडिहेरसहियाणं चउतीसातिसयविसेससंजुत्ताणं बत्तीसदेविंदमणिमउडमत्थयमहिदाणं बलदेव - वासुदेव - चक्कहर - रिसि - मुणि- जइ - अणगारो व गूढाणं थुइसहस्सणिलयाणं उसहाइ वीर पच्छिम मंगल महापुरिसाणं णिच्चकालं अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमंसामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरणं, जिणगुणसंपत्ती हो मज्झं ।। हे भगवन्! जो मैंने चौबीस तीर्थंकर भक्तिसंबंधी कायोत्सर्ग किया है उसकी आलोचना करना चाहता हूँ। जो पाँच कल्याणकोंसे संपन्न हैं, आठ महाप्रातिहार्योंसे सहित हैं, चौंतीस अतिशयविशेषोंसे सहित हैं, बत्तीस इंद्रोंके मणिमय मुकुटोंसे युक्त मस्तकोंसे जिनकी पूजा होती है, बलदेव, नारायण, चक्रवर्ती, ऋषि, मुनि, यति और अनगार इन चारों प्रकारके मुनियोंसे जो परिवृत हैं, तथा हजारों स्तुतियों के जो घर हैं ऐसे ऋषभादि महावीर पर्यंतके मंगलमय महापुरुषोंकी मैं निरंतर अर्चा करता हूँ, पूजा करता हूँ, वंदना करता हूँ, उन्हें नमस्कार करता हूँ। उसके फलस्वरूप मेरे दुःखोंका क्षय हो, कर्मोंका क्षय हो, रत्नत्रयकी प्राप्ति हो, सुगतिमें गमन हो, समाधिमरण हो और मुझे जिनेंद्र भगवान्‌के गुणोंकी संप्राप्ति हो । ***
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy