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द्वादशानुप्रक्षा
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यदि अपनी शक्ति है तो रातदिन प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, समाधि और आलोचना करनी
चाहिए । । ८८ । ।
मोक्खगया जे पुरिसा, अणाइकालेण बार अणुवेक्खं । परिभाविऊण सम्मं, पणमामि पुणो पुणो तेसिं । । ८९ । ।
जो पुरुष अनादिकालसे बारह अनुप्रेक्षाओंको अच्छी तरह चिंतन कर मोक्ष गये हैं मैं उन्हें बार बार प्रणाम करता हूँ ।। ८९ ।।
किं पलविण बहुणा, जे सिद्धा णरवरा गये काले ।
सिज्झिहदि जेवि भविया, तं जाणह तस्स माहप्पं । । ९० ।।
बहुत कहनेसे क्या लाभ है? भूतकालमें जो श्रेष्ठ पुरुष सिद्ध हुए हैं और जो भविष्यत् काल सिद्ध होवेंगे उसे अनुप्रेक्षाका महत्त्व जानो । । ९० ।।
इदि णिच्छयववहारं, जं भणियं कुंदकुंदमुणिणाहे ।
जो भाव सुद्धमणो, सो पावइ परमणिव्वाणं । । ९१ । ।
इस प्रकार कुंदकुंद मुनिराजने निश्चय और व्यवहारका आलंबन लेकर जो कहा है, शुद्ध हृदय होकर जो उसकी भावना करता है वह परम निर्वाणको प्राप्त होता है । । ९१ ।।
इस प्रकार कुंदकुंदाचार्यविरचित बारसणुपेक्खा -- बारह अनुप्रेक्षा ग्रंथ में
बारह अनुप्रेक्षाओंका वर्णन समाप्त हुआ।
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