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________________ द्वादशानुप्रक्षा २६१ यदि अपनी शक्ति है तो रातदिन प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, समाधि और आलोचना करनी चाहिए । । ८८ । । मोक्खगया जे पुरिसा, अणाइकालेण बार अणुवेक्खं । परिभाविऊण सम्मं, पणमामि पुणो पुणो तेसिं । । ८९ । । जो पुरुष अनादिकालसे बारह अनुप्रेक्षाओंको अच्छी तरह चिंतन कर मोक्ष गये हैं मैं उन्हें बार बार प्रणाम करता हूँ ।। ८९ ।। किं पलविण बहुणा, जे सिद्धा णरवरा गये काले । सिज्झिहदि जेवि भविया, तं जाणह तस्स माहप्पं । । ९० ।। बहुत कहनेसे क्या लाभ है? भूतकालमें जो श्रेष्ठ पुरुष सिद्ध हुए हैं और जो भविष्यत् काल सिद्ध होवेंगे उसे अनुप्रेक्षाका महत्त्व जानो । । ९० ।। इदि णिच्छयववहारं, जं भणियं कुंदकुंदमुणिणाहे । जो भाव सुद्धमणो, सो पावइ परमणिव्वाणं । । ९१ । । इस प्रकार कुंदकुंद मुनिराजने निश्चय और व्यवहारका आलंबन लेकर जो कहा है, शुद्ध हृदय होकर जो उसकी भावना करता है वह परम निर्वाणको प्राप्त होता है । । ९१ ।। इस प्रकार कुंदकुंदाचार्यविरचित बारसणुपेक्खा -- बारह अनुप्रेक्षा ग्रंथ में बारह अनुप्रेक्षाओंका वर्णन समाप्त हुआ। ***
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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