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________________ ३५४ कुदकुद-भारता योगके तीन भेद हैं यह जानना चाहिए।।४९।। असुहेदरभेदेण दु, एक्केक्कं वण्णिदं हवे दुविहं। आहारादी सण्णा, असुहमणं इदि विजाणेहि।।५०।। मन वचन काय इन तीनों योगोंमेंसे प्रत्येक योग अशुभ और शुभके भेदसे दो प्रकारका कहा गया है। आहार आदि संज्ञाओंका होना अशुभ मन है ऐसा जानो।।५० ।। किण्हादि तिण्णि लेस्सा, करणजसोक्खेसु सिद्धपरिणामो। ईसा विसादभावो, असुहमणं त्ति य जिणा वेंति।।५१।। कृष्णादि तीन लेश्याएँ, इंद्रियजन्य सुखोंमें तीव्र लालसा, ईर्ष्या तथा विषादभाव अशुभ मन है ऐसा जिनेंद्रदेव जानते हैं ।।५१।। रागो दोसो मोहो, हास्सादिणोकसायपरिणामो। __ थूलो वा सुहुमो वा, असुहमणो त्ति य जिणा वेंति ।।५२।। राग, द्वेष, मोह तथा हास्यादिक नोकषायरूप परिणाम चाहे स्थूल हों चाहे सूक्ष्म, अशुभ मन है ऐसा जिनेंद्रदेव जानते हैं।।१२।। भत्थित्थिरायचोरकहाओ वयणं वियाण असुहमिदि। ____ बंधणछेदणमारणकिरिया सा असुहकायेत्ति।।५३।। भक्तकथा, स्त्रीकथा, राजकथा और चोरकथा अशुभ वचन है ऐसा जानो। तथा बंधन, छेदन और मारणरूप जो क्रिया है वह अशुभ काय है।।५३।। मोत्तूण असुहभावं, पुव्वुत्तं णिरवसेसदो दव्वं। वदसमिदिसीलसंजमपरिणामं सुहमणं जाणे।।५४।। पहले कहे हुए अशुभ भाव तथा अशुभ द्रव्यको व्रत, समिति, शील और संयमरूप परिणामोंका होना शुभ मन है ऐसा जानो।।५४ ।। संसारछेदकारणवयणं सुहवयणमिदि जिणुद्दिटुं। जिणदेवादिसु पूजा, सुहकायं त्ति य हवे चेट्ठा।।५५।। जो वचन संसारका छेद करनेमें कारण है वह शुभ वचन है ऐसा जिनेंद्र भगवान्ने कहा है। तथा जिनेंद्रदेव आदिकी पूजारूप जो चेष्टा -- शरीरकी प्रवृत्ति है वह शुभकाय है।।५५ ।। जम्मसमुद्दे बहुदोसवीचिए दुःखजलचराकिण्णे। जीवस्स परिन्भमणं, कम्मासवकारणं होदि।।५६।।
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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