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________________ अष्टपाहुड २७३ त्रस विघातरूप स्थूल हिंसा, स्थूल असत्य, स्थूल अदत्तग्रहण तथा परस्त्रीसेवनका त्याग करना एवं परिग्रह एवं आरंभका परिमाण करना ये क्रमशः अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत और परिग्रहपरिमाणाणुव्रत हैं।।२४।। दिसिविदिसमाण पढम, अणत्थदंडस्स वज्जणं बिदियं। भोगोगभोगपरिमा, इयमेव गुणव्वया तिण्णि।।२५।। दिशाओं और विदिशाओंमें गमनागमनका प्रमाण करना सो पहला दिग्वत नामा गुणव्रत है। अनर्थदंडका त्याग करना सो दूसरा अनर्थदंडनामा गुणव्रत है और भोग-उपभोगका परिमाण करना सो तीसरा भोगोपभोगपरिमाण नामा गुणव्रत है। इस प्रकार ये तीन गुणव्रत हैं।।२५ ।। सामाइयं च पढम, बिदियं च तहेव पोसहं भणियं। तइयं च अतिहिपुज्जं, चउत्थ सल्लेहणा अंते।।२६।। सामायिक पहला शिक्षाव्रत है, प्रोषध दूसरा शिक्षाव्रत कहा गया है, अतिथिपूजा तीसरा शिक्षाव्रत है और जीवनके अंतमें सल्लेखना धारण करना चौथा शिक्षाव्रत है।।२६।। एवं सावयधम्मं, संजमचरणं उदेसियं सयलं। सुद्धं संजमचरणं, जइधम्मं णिक्कलं वोच्छे।।२७।। इस प्रकार श्रावकधर्मरूप संयमचरणका निरूपण किया। अब आगे यतिधर्मरूप सकल, शुद्ध और निष्फल संयमचरणका निरूपण करूँगा।।२७ ।। पंचिंदियसंवरणं, पंचवया पंचविंसकिरियासु। पंच समिदि तयगुत्ती, संजमचरणं णिरायारं।।२८।। पाँच इंद्रियोंका दमन, पाँच व्रत, इनकी पच्चीस भावनाएँ, पाँच समितियाँ और तीन गुप्तियाँ यह निरागार संयमचरण चारित्र है।।२८ ।। अमणुण्णे य मणुण्णे, सजीवदब्वे अजीवदब्वे य। ण करेइ रायदोसे, पंचेंदियसंवरो भणिओ।।२९।। अमनोज्ञ और मनोज्ञ स्त्रीपुत्रादि सजीव द्रव्योंमें तथा गृह, सुवर्ण, रजत आदि अजीव द्रव्योंमें जो राग द्वेष नहीं करता है वह पंचेंद्रियोंका संवर कहा गया है।।२९।। हिंसाविरइ अहिंसा, असच्चविरई अदत्तविरई य । तरियं अबंभविरई, पंचम संगम्मि विरई य।।३०।। हिंसाका त्याग अहिंसा महाव्रत है। असत्यका त्याग सत्य महाव्रत है। अदत्त वस्तुका त्याग अचौर्य महाव्रत है। कुशीलविरत होना ब्रह्मचर्य महाव्रत है और परिग्रहसे विरत होना अपरिग्रह महाव्रत
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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