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________________ २२४ कुंदकुंद-भारता पुद्गलकी स्वभाव पर्याय और विभाव पर्यायका वर्णन अण्णणिरावेक्खो जो, परिणामो सो सहावपज्जायो। खंधसरूवेण पुणो, परिणामो सो विहावपज्जायो।।२८ ।। जो अन्यनिरपेक्ष परिणाम है वह स्वभावपर्याय है और स्कंधरूपसे जो परिणाम है वह विभाव पर्याय है। भावार्थ -- पुद्गल द्रव्यका परमाणुरूप जो परिणमन है वह अन्य परमाणुओंसे निरपेक्ष होनेके कारण स्वभाव पर्याय है और स्कंधरूप जो परिणमन है वह अन्य परमाणुओंसे सापेक्ष होनेके कारण विभाव पर्याय है।।२८ ।। __ परमाणुमें द्रव्यरूपताका वर्णन पोग्गलदव्वं उच्चइ, परमाणू णिच्छएण इदरेण। __पोग्गलदव्वेत्ति पुणो, ववदेसो होदि खंधस्स ।।२९।। निश्चय नयसे परमाणुको पुद्गल द्रव्य कहा जाता है और व्यवहारसे स्कंधके 'पुद्गल द्रव्य है' ऐसा व्यपदेश होता है। भावार्थ -- पुद्गल द्रव्यके परमाणु और स्कंधकी अपेक्षा दो भेद हैं। दोनों भेदोंमें द्रव्य और पर्यायरूपता है, क्योंकि द्रव्यके बिना पर्याय नहीं रहता और पर्यायके बिना द्रव्य नहीं रहता ऐसा आगमका उल्लेख है। यहाँ निश्चयनयकी अपेक्षा परमाणुको द्रव्य और स्कंधको पर्याय कहा गया है। स्कंधमें जो पुद्गल द्रव्यका व्यवहार होता है अथवा परमाणुमें जो पर्यायका व्यवहार होता है उसे व्यवहार नयका विषय बताया है, एतावता नयविवक्षासे दोनोंमें उभयरूपता है।।२९।। ____ धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्यका लक्षण गमणणिमित्तं धम्ममधम्मं ठिदि जीवपुग्गलाणं च। अवगहणं आयासं, जीवादीसव्वदव्वाणं ।।३०।। जो जीव और पुद्गलोंके गमनका निमित्त है वह धर्म है। जो जीव और पुद्गलोंकी स्थितिका निमित्त है वह अधर्म है। तथा जो जीवादि समस्त द्रव्योंके अवगाहनका निमित्त है वह आकाश है। भावार्थ -- छह द्रव्योंमें सिर्फ जीव और पुद्गल द्रव्यमें क्रिया है, शेष चार द्रव्य क्रियारहित हैं। जिनमें क्रिया होती है उन्हींमें क्रियाका अभाव होनेपर स्थितिका व्यवहार होता है। इस तरह जीव और पुद्गल इन दो द्रव्योंकी क्रियामें जो प्रेरक तत्त्व है वह धर्म द्रव्य है तथा उन्हीं दो द्रव्योंमें जो अप्रेरक निमित्त है वह अधर्म द्रव्य है। अवगाहन समस्त द्रव्योंका होता है इसलिए आकाशका लक्षण बतलाते हुए कहा गया है कि जो जीवादि समस्त द्रव्योंके अवगाहन स्थान देने में निमित्त है वह आकाश द्रव्य है।।३० ।।
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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