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________________ नियमसार २१९ जीव, पुद्गलकाय, धर्म, अधर्म, काल और आकाश ये तत्त्वार्थ कहे गये हैं। ये तत्त्वार्थ अनेक गुण और पर्यायोंसे संयुक्त हैं।। जीवका लक्षण तथा उपयोगके भेद जीवो उवओगमओ, उवओगो णाणदंसणो होइ। णाणुवओगो दुविहो, सहावणाणं विभावणाणं त्ति।।१०।। जीव उपयोगमय है अर्थात् जीवका लक्षण उपयोग है। उपयोग ज्ञानदर्शनरूप है अर्थात् उपयोगके ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोगके भेदसे दो भेद हैं। उनमें ज्ञानोपयोग स्वभावज्ञान और विभावज्ञानके भेदसे दो प्रकारका है।।१०।। स्वभावज्ञान और विभावज्ञानका विवरण केवलमिंदियरहियं, असहायं तं सहावणाणं त्ति। सण्णादिदरवियप्पे, विहावणाणं हवे दुविहं ।।११।। इंद्रियोंसे रहित तथा प्रकाश आदि बाह्य पदार्थोंकी सहायतासे निरपेक्ष जो केवलज्ञान है वह स्वभावज्ञान है। सम्यग्ज्ञान और मिथ्याज्ञानके विकल्पसे विभावज्ञान दो प्रकारका है।।११।। सम्यग्विभावज्ञान तथा मिथ्या विभावज्ञानके भेद सण्णाणं चउभेदं, मदिसुदओही तहेव मणपज्ज। अण्णाणं तिवियप्पं, मदियाई भेददो चेव।।१२।। सम्यग्विभावज्ञानके चार भेद हैं -- मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय। और अज्ञानरूप विभावज्ञान कुमति, कुश्रुत तथा कुअवधिके भेदसे तीन प्रकारका है।।१२।। दर्शनोपयोगके भेद तह दंसणउवओगो, ससहावेदरवियप्पदो दुविहो। केवलमिंदियरहियं, असहायं तं सहावमिदि भणिदं।।१३।। उसी प्रकार दर्शनोपयोग, स्वभावदर्शनोपयोग और विभावदर्शनोपयोगके भेदसे दो प्रकारका है। इनमें इंद्रियोंसे रहित तथा परपदार्थकी सहायतासे निरपेक्ष जो केवलदर्शन है वह स्वभावदर्शन है इस प्रकार कहा गया है। विभावदर्शन और पर्यायके भेद चक्खु अचक्खू ओही, तिण्णिवि भणिदं विभावदिच्छित्ति। पज्जाओ दुवियप्पो, सपरावेक्खो य णिरवेक्खो।।१४।। चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन ये तीनों दर्शन, विभावदर्शन हैं इस प्रकार कहा गया है।
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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