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________________ नियमसार नियमसार जीवाधिकार २१७ मंगलाचरण और प्रतिज्ञावाक्य मऊण जिणं वीरं, अणंतवरणाणदंसणसहावं । वोच्छामि णियमसारं, केवलिसुदकेवली भणिदं । । १ । । अनंत और उत्कृष्ट ज्ञान दर्शन स्वभावसे युक्त श्री महावीर जिनेंद्रको नमस्कार कर मैं केवली और श्रुतकेवली द्वारा कहे हुए नियमसारको कहूँगा । । १ । । मोक्षमार्ग और उसका फल मग्गो मग्गफलं ति य, दुविहं जिणसासणे समक्खादं । मग्गो मोक्खउवाओ, तस्स फलं होइ णिव्वाणं । । २ । । जिनशासनमें मार्ग और मार्गफल इस तरह दो प्रकारका कथन किया गया है। इनमें मोक्ष का उपाय अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र मार्ग है और निर्वाणकी प्राप्ति होना मार्गका फल है । । २ । । नियमसार पदकी सार्थकता णियमेण य जं कज्जं, तण्णियमं णाणदंसणचरित्तं । विवरीयपरिहरत्थं, भणिदं खलु सारमिदि वयणं । । ३ । । नियमसे जो करनेयोग्य है वह नियम है; ऐसा नियम ज्ञान, दर्शन, चारित्र है । इनमें विपरीत अर्थात् मिथ्याज्ञान, मिथ्यादर्शन और मिथ्याचारित्रका परिहार करनेके लिए 'सार' यह वचन नियमसे कहा गया है। भावार्थ -- नियमसारका अर्थ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र है । इन्हींका इस ग्रंथ में वर्णन किया जायेगा । । ३ । । नियम और उसका फल यिमं मोक्खउवाओ, तस्स फलं हवदि परमणिव्वाणं । एदेसिं तिहं पि य, पत्तेयपरूवणा होई । ॥४॥ नियम अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र मोक्षका उपाय है और उसका फल
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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