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नियमसार
नियमसार
जीवाधिकार
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मंगलाचरण और प्रतिज्ञावाक्य
मऊण जिणं वीरं, अणंतवरणाणदंसणसहावं ।
वोच्छामि णियमसारं, केवलिसुदकेवली भणिदं । । १ । ।
अनंत और उत्कृष्ट ज्ञान दर्शन स्वभावसे युक्त श्री महावीर जिनेंद्रको नमस्कार कर मैं केवली और श्रुतकेवली द्वारा कहे हुए नियमसारको कहूँगा । । १ । ।
मोक्षमार्ग और उसका फल
मग्गो मग्गफलं ति य, दुविहं जिणसासणे समक्खादं ।
मग्गो मोक्खउवाओ, तस्स फलं होइ णिव्वाणं । । २ । ।
जिनशासनमें मार्ग और मार्गफल इस तरह दो प्रकारका कथन किया गया है। इनमें मोक्ष का उपाय अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र मार्ग है और निर्वाणकी प्राप्ति होना मार्गका फल है । । २ । । नियमसार पदकी सार्थकता
णियमेण य जं कज्जं, तण्णियमं णाणदंसणचरित्तं ।
विवरीयपरिहरत्थं, भणिदं खलु सारमिदि वयणं । । ३ । ।
नियमसे जो करनेयोग्य है वह नियम है; ऐसा नियम ज्ञान, दर्शन, चारित्र है । इनमें विपरीत अर्थात् मिथ्याज्ञान, मिथ्यादर्शन और मिथ्याचारित्रका परिहार करनेके लिए 'सार' यह वचन नियमसे कहा गया है। भावार्थ -- नियमसारका अर्थ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र है । इन्हींका इस ग्रंथ में वर्णन किया जायेगा । । ३ । ।
नियम और उसका फल
यिमं मोक्खउवाओ, तस्स फलं हवदि परमणिव्वाणं ।
एदेसिं तिहं पि य, पत्तेयपरूवणा होई । ॥४॥
नियम अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र मोक्षका उपाय है और उसका फल