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प्रवचनसार
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परमाणुसे रोका हुआ जो आकाश है वह आकाशका प्रदेश इस नामसे कहा गया है। वह आकाशका एक प्रदेश अन सब द्रव्योंके प्रदेशोंको तथा परम सूक्ष्म अवस्थाको प्राप्त हुए अनंत पुद्गल स्कंधोंको अवकाश देनेमें समर्थ है।।४८।। आगे तिर्यक्प्रचय और ऊर्ध्वप्रचयका लक्षण कहते हैं --
एको व दुगे बहुगा, संखातीदा तदो अणंता य।
दव्वाणं च पदेसा, संति हि समयत्ति कालस्स।।४९।। कालद्रव्यको छोड़कर शेष पाँच द्रव्योंके प्रदेश एक दो अर्थात् संख्यात, असंख्यात और उसके बाद अनंत तक यथायोग्य होते हैं परंतु कालद्रव्यका समय पर्यायरूप एक ही प्रदेश है।
___ प्रदेशोंके समूहको तिर्यक्प्रचय और क्रमवर्ती समयोंके समूहको ऊर्ध्वताप्रचय कहते हैं। ऊर्ध्वताप्रचय सभी द्रव्योंमें होता है परंतु तिर्यक्प्रचय उन्हीं द्रव्योंमें संभव है जिनमें कि अनेक प्रदेश पाये जाते हैं। यतः कालद्रव्य एकप्रदेशी है अतः उसमें तिर्यक्प्रचय नहीं होता, केवल ऊर्ध्वताप्रचय ही होता है।।४९।।
अब कालद्रव्यमें जो ऊर्ध्वप्रचय होता है वह निरन्वय नहीं होता, किंतु द्रव्यपनेसे अन्वयी रूप -- ध्रुवरूप होता है यह सिद्ध करते हैं --
उप्पादो पद्धंसो, विज्जदि जदि जस्स एकसमयम्मि।
समयस्स सोवि समयो, सभावसमवट्ठिदो हवदि।।५०।। जिस कालाणुरूप समयका एक ही समयमें उत्पाद और व्यय होता है वह समय भी -- काल पदार्थ भी अपने अपने स्वभावमें अवस्थित रहता है।
कालाणु द्रव्य होनेके कारण ध्रुवरूप रहता है और उसमें समयरूप पर्यायोंका उत्पाद तथा व्यय होता रहता है। मंदगतिसे चलनेवाला पुद्गल परमाणु जब पूर्व कालाणुको छोड़कर उत्तरवर्ती कालाणुके पास पहुँचता है तब नवीन समय पर्यायका उत्पाद होता है और पूर्व समय पर्यायका व्यय होता है। परंतु कालाणु दोनोंमें अन्वयरूपसे विद्यमान रहता है।।५० ।।
आगे यह सिद्ध करते हैं कि वर्तमान समयके समान काल द्रव्यके अतीत-अनागत सभी समयोंमें उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य होते हैं --
__ 'एकम्मि संति समये, संभवठिदिणाससण्णिदा अट्ठा।
समयस्स सव्वकालं, एस हि कालाणुसब्भावो।।५१।। एक समय पर्यायमें कालाणुरूप कालद्रव्यके उत्पाद स्थिति तथा विनाशरूप भाव होते हैं। निश्चयसे यह उत्पादादित्रयरूप कालाणुका सद्भाव सदाकाल विद्यमान रहता है।
१. एगम्हि ज. वृ.।