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________________ प्रवचनसार अब अतद्भाव सर्वथा अभावरूप है इसका निषेध करते हैं. दव्वं तण गुण, जोवि गुणो सो ण तच्चमत्थादो । एसोहि अब्भावो, व अभावोति णिद्दिट्ठो । । १६ ।। है और जो गुण है वह यथार्थमें द्रव्य नहीं है। निश्चयसे यही अतद्भाव है • अन्यत्व नामक भेद है। सर्वथा अभाव अतद्भाव नहीं है ऐसा कहा गया है। द्रव्य और गुणमें सर्वथा अभाव माननेसे दोनोंका ही अस्तित्व सिद्ध नहीं होता अत: एकका अन्यरूप नहीं हो सकना ही अतद्भाव माना जाता है । । १६ ।। आगे सत्ता और द्रव्यमें गुण-गुणी भाव सिद्ध करते हैं -- १५९ जो खलु दव्वसहावो, परिणामो सो गुणो सदविसिट्ठो । सदवट्ठियं सहावे, दव्वत्ति जिणोवदेसोयं । । १७ ।। निश्चयसे जो द्रव्यका स्वभावभूत उत्पादादित्रय रूप परिणाम है वह सत्तासे अभिन्न गुण है और निरंतर स्वभावमें अवस्थित रहनेवाला द्रव्य सत् है ऐसा श्री जिनेंद्र भगवान्‌का उपदेश है। निरंतर स्वभावमें स्थित रहनेके कारण द्रव्य सत् कहलाता है और कालत्रयवर्ती द्रव्यका जो उत्पादादित्रयरूप परिणमन है वह उसका स्वभाव है। द्रव्यका स्वभाव सत्तासे अभिन्न तथा गुणस्वरूप है। द्रव्य सत्ता गुणकी प्रधानता है और सत्ता गुणमें द्रव्य रहता है, ऐसा व्यवहार होता है। इसी व्यवहारके कारण द्रव्यको सत् कहा है। इस सत्ता गुणसे सत् स्वरूप गुणी द्रव्यका भान होता है अतः सत्ता गुण है और द्रव्य गुणी है ।।१७।। अब गुण और गुणियों में नानापनका निराकरण करते हैं। -- गुणत्ति व कोई, पज्जाओत्तीह वा विणा दव्वं । दव्वत्तं पुण भावो, तम्हा दव्वं सयं सत्ता । । १८ ।। इस संसारमें द्रव्यके बिना न कोई गुण है और न कोई पर्याय है । अर्थात् जितने भी गुण अथवा पर्याय हैं वे सब द्रव्यके आश्रय ही रहते हैं। और चूँकि द्रव्यका अस्तित्व उसका स्वभावभूत गुण है इसलिए द्रव्य स्वयं ही सत्तारूप है। सारांश यह है कि जीवादि द्रव्य और उनके स्वभावभूत अस्तित्वादि गुण सर्वथा पृथक् पृथक् नहीं हैं ।। १८ ।। -- आगे सदुत्पाद और असदुत्पादमें अविरोध प्रकट करते हैं. एवंविहे सहावे, दव्वं दव्वत्थपज्जयत्थेहिं । सदसब्भावणिबद्धं, पाडुब्भावं सदा लभदि । । १९ । ।
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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