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प्रवचनसार
१५७ द्रव्यका अन्य पर्याय उत्पन्न होता है और अन्य पर्याय नष्ट होता है फिर भी द्रव्य न नष्ट ही हुआ है और न उत्पन्न ही।
___ संयोगसे उत्पन्न होनेवाले द्रव्यपर्याय दो प्रकारके हैं -- एक समानजातीय और दूसरा असमानजातीय। स्कंधकी व्यणुक, त्र्यणुक, चतुरणुक आदि पिंडपर्याय समानजातीय पर्याय हैं और जीव तथा पुद्गलके संबंधसे होनेवाले नर-नारकादि पर्याय असमानजातीय पर्याय हैं। किसी स्कंधमें त्र्यणुक पर्याय नष्ट होकर चतुरणुक पर्याय उत्पन्न हो गया, पर परमाणुओंकी अपेक्षा वह स्कंध न नष्ट ही हुआ है और न उत्पन्न ही। इसी प्रकार किसी जीवमें मनुष्य पर्याय नष्ट होकर देव पर्याय उत्पन्न हुआ पर जीवत्व सामान्यकी अपेक्षा वह जीव न नष्ट ही हुआ और न उत्पन्न ही। इससे सिद्ध होता है कि उत्पादादि तीनों द्रव्यरूप ही हैं, उससे पृथक् नहीं हैं।।११।। अब एक द्रव्यके द्वारसे द्रव्यमें उत्पादादिका विचार करते हैं --
परिणमदि सयं दव्वं, गुणदो य गुणंतरं सदविसिटुं।
तम्हा गुणपज्जाया, भणिया पुण दव्वमेवत्ति ।।१२।। अपने स्वरूपास्तित्वसे अभिन्न द्रव्य स्वयं ही एक गुणसे अन्यगुण परिणमन करता है अतः गुण पर्याय द्रव्य इस नामसे ही कहे गये हैं।
एक द्रव्यसे आश्रित होनेवाले पर्याय गुणपर्याय कहलाते हैं जैसे कि आममें हरा रूप नष्ट होकर पीला रूप उत्पन्न हो गया, यहाँ हरा और पीला रूप आमके गुण पर्याय हैं। अथवा किसी जीवका ज्ञानगुण मतिज्ञानरूपसे नष्ट होकर श्रुतज्ञानरूप हो गया। यहाँ मतिज्ञान और श्रुतज्ञान जीवके गुणपर्याय हैं। जिस प्रकार हरे पीले रूपमें परिवर्तन होनेपर भी आम आम ही रहता है, अन्यरूप नहीं हो जाता है। अथवा मतिश्रुतज्ञानमें परिवर्तन होनेपर भी जीव जीव ही रहता है, अन्यरूप नहीं हो जाता उसी प्रकार संसारका प्रत्येक द्रव्य यद्यपि एक गुणसे अन्य गुणरूप परिणमन करता है परंतु वह स्वयं अन्यरूप नहीं हो जाता। इससे सिद्ध होता है कि गुण पर्याय द्रव्य ही हैं -- उससे भिन्न नहीं।।१२।। ___ अब सत्ता और द्रव्य अभिन्न हैं इस विषयमें युक्ति प्रदर्शित करते हैं --
ण हवदि जदि सद्दव्वं, असद्धवं हवदि तं कधं दव्वं ।
हवदि पुणो अण्णं वा, तम्हा दव्वं सयं सत्ता।।१३।। यदि द्रव्य स्वयं सत् रूप न हो तो वह असत् रूप हो जायेगा और उस दशामें वह ध्रुवरूप -- नित्यरूप किस प्रकार हो सकेगा? द्रव्यमें जो ध्रुवता है वह सत् रूप होनेसे ही है। यदि द्रव्यको सत् रूप होनेसे ही है। यदि द्रव्यको सत् रूप नहीं माना जायेगा तो द्रव्यकी ध्रुवता नष्ट हो जायेगी अर्थात् द्रव्य ही नष्ट हो जायेगा। इसी प्रकार यदि सत्तासे द्रव्यको पृथक् माना जाये तो सत्ता गुण अनावश्यक हो जाता है।