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कुन्दकुन्द-भारती जम्हा कम्मं कुव्वइ, कम्मं देई हरत्ति जं किंचि। तम्हा उ सव्वे जीवा, अकारया हुंति आवण्णा।।३३५ ।। पुरुसिच्छियाहिलासी, इच्छीकम्मं च पुरिसमहिलसइ। एसा आयरियपरं,परागया एरिसि दु सुई।।३३६।। तम्हा ण कोवि जीवो, अबंभचारी उ अम्ह उवएसे। जम्हा कम्मं चेव हि, कम्मं अहिलसइ इदि भणियं ।।३३७।। जम्हा घाएइ परं, परेण घाइज्जइ य सा पयडी। एएणच्छेण किर, भण्णइ परघायणामित्ति।।३३८।। तम्हा ण कोवि जीवो, बघायओ अत्थि अम्ह उवदेसे। जम्हा कम्मं चेव हि, कम्मं घाएदि इदि भणियं ।।३३९ ।। एवं संखुवएसं, जे उ परूविंति एरिसं समणा। तेसिं पयडी कुव्वइ, अप्पा य अकारया सव्वे।।३४०।। अहवा मणसि मज्झं, अप्पा अप्पाणमप्पणो कुणई। एसो मिच्छसहावो, तुम्हं एवं मुणंतस्स।।३४१।। अप्पा णिच्चो असंखिज्जपदेसो देसिओ उ समयम्हि। णवि सो सक्कइ तत्तो, हीणो अहिओ य काउंजे।।३४२।। जीवस्स जीवरूवं, विच्छरदो जाण लोगमित्तं हि। तत्तो सो किं हीणो, अहिओ व कहं कुणइ दव्वं ।।३४३।। अह जाणओ उ भावो, णाणसहावेण अस्थि इत्ति मयं।
तम्हा णवि अप्पा अप्पयं तु सयमप्पणो कुणइ।।३४४ ।। जीव कर्मों के द्वारा अज्ञानी किया जाता है उसी तरह कर्मोंके द्वारा ज्ञानी होता है। कर्मोंके द्वारा सुलाया जाता है उसी प्रकार कर्मोके द्वारा जगाया जाता है। कर्मोंके द्वारा सुखी किया जाता है उसी प्रकार कर्मोंके द्वारा दुःखी किया जाता है। कोंके द्वारा मिथ्यात्वको प्राप्त किया जाता है, कर्मोंके द्वारा असंयमको प्राप्त कराया जाता है। कर्मोंके द्वारा ऊर्ध्वलोक अधोलोक और तिर्यग्लोकमें घुमाया जाता है। और जो कुछ भी शुभाशुभ कार्य है वह सब कर्मोंके द्वारा किया जाता है। क्योंकि कर्मही करता है और कर्म ही देता है तथा जो कुछ हरा जाता है वह कर्म ही हरता है, इसलिए सभी जीव अकारक प्राप्त हुए अर्थात् जीव कर्ता न