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समयसार
आगे कहते हैं कि पुद्गल द्रव्यका कर्मरूप परिणमन जीवसे जुदा है जइ जीवेण सहच्चिय, पुग्गलदव्वस्स कम्मपरिणामो । एवं पुग्गलजीवा, हु दोवि कम्मत्तमावण्णा । । १३९।। एकस्स दु परिणामो, पुग्गलदव्वस्स कम्मभावेण ।
ता जीवभावहेदूहिं, विणा कम्मस्स परिणामो । । १४०।। यदि ऐसा माना जाय कि पुद्गलद्रव्यका जो कर्मरूप परिणाम है वह जीवके साथ ही होता है तो ऐसा माननेपर पुद्गल और जीव दोनों ही कर्मभावको प्राप्त हो जायेंगे इसलिये यह सिद्ध हुआ कि कर्मरूपसे परिणाम एक पुद्गल द्रव्यके ही होता है और वह परिणाम जीवभावरूप निमित्त कारणसे पृथक् पुद्गल कर्मका ही है । । १३९-१४० ।।
आगे पूछते हैं कि कर्म आत्मामें बद्ध स्पृष्ट है या अबद्ध स्पृष्ट ? इसका उत्तर नयविभागसे कहते हैं -
जीवे कम्मं बद्धं पुढं चेदि ववहारणयभणिदं ।
सुद्धणयस्सदु जीवे, अबद्धपुट्ठे हवइ कम्मं । । १४१ ।।
कर्म बद्ध है तथा स्पृष्ट है यह व्यवहार नयका कहना है और कर्म जीवसे अबद्ध स्पृष्ट है यह शुद्ध नय -- निश्चय नय का वचन है । ।१४१ ।।
आगे कहते हैं कि ये दोनों नयपक्ष हैं । समयसार इन नयपक्षोंसे परे है --
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कम्मं बद्धमबद्धं, जीवे एवं तु जाण णयपक्खं ।
पक्खातिक्कतो पुण, भण्णदि जो सो समयसारो । । १४२ ।।
कर्म बँधे हुए हैं अथवा नहीं बँधे हुए हैं ऐसा तो नयपक्ष जानो और जो इस पक्षसे अतिक्रांत
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• दूरवर्ती कहा जाता है वह समयसार है । । १४२ ।।
आगे पक्षातिक्रांतका क्या स्वरूप है? यह कहते हैं -
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दोहवि णयाण भणियं, जाणइ णवरं तु समयपडिबद्धो ।
दुक्खं हिदि, किंचिवि णयपक्खपरिहीणो ।। १४३ ।।
जो पुरुष अपने शुद्ध आत्मासे प्रतिबद्ध हो दोनों ही नयोंके कथनको केवल जानता है किंतु किसी
भी नयपक्षको ग्रहण नहीं करता वह नयपक्षसे परिहीन है -- पक्षातिक्रांत है । । १४३ ।।
आगे पक्षातिक्रांत ही समयसार है यह कहते हैं
सम्मदंसणणाणं, एदं लहदित्ति णवरि ववदेसं ।
सव्वणयपक्खरहिदो, भणिदो जो सो समयसारो ।।१४४ ।।