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________________ समयसार ववहारेणुवदिस्स, णाणिस्स चरित्तदंसणं णाणं । विणाणं व चरित्तं, ण दंसणं जाणगो सुद्धो ।। ७ ।। ज्ञानी जीवके चारित्र है, दर्शन है, ज्ञान है यह व्यवहार नयसे कहा जाता है। निश्चयनयसे न ज्ञान है न चारित्र है और न दर्शन है। वह तो एक ज्ञायक ही है इसलिए शुद्ध कहा गया है ।।७।। आगे यदि व्यवहार नयसे पदार्थका वास्तविक स्वरूप नहीं कहा जाता तो उसे छोड़कर केवल निश्चय नयसे ही कथन करना चाहिए इस प्रश्नका उत्तर देते हैं। -- जह णवि सक्कमणज्जो, अणज्जभासं विणा ण गाहेउं । ४७ तह ववहारेण विणा, परमत्थुवएसण मसक्कं । । ८ । । जिस प्रकार म्लेच्छजन म्लेच्छ भाषाके बिना वस्तुका स्वरूप ग्रहण करानेके लिए शक्य नहीं है, उसी प्रकार व्यवहारके बिना परमार्थका उपदेश शक्य नहीं है ।।८।। -- आगे व्यवहार नय परमार्थका प्रतिपादक किस प्रकार है? इस प्रश्नका उत्तर कहते हैं जो हि सुहिगच्छ, अप्पाणमिणं तु केवलं सुद्धं । तं सुकेवलिमिसिणो, भांति लोयप्पईवयरा ।।९।। जो 'सुयणाणं सव्वं, जाणइ 'सुयकेवलिं तमाहु जिणा । णाणं अप्पा सव्वं, जम्हा ' सुयकेवली तम्हा' ।।१०।। जो निश्चय कर श्रुतज्ञानसे इस अनुभव गोचर केवल एक शुद्ध आत्माको जानता है उसे लोकको प्रकाशित करनेवाले ऋषीश्वर श्रुतकेवली कहते हैं। [यह निश्चय नयसे श्रुतकेवलीका लक्षण है । अब व्यवहार नयसे श्रुतकेवलीका लक्षण कहते हैं।] जो समस्त श्रुतज्ञानको जानता है जिनेंद्रदेव उसे श्रुतवली कहते हैं। यत: सब ज्ञान आत्मा है अतः आत्माको ही जाननेसे श्रुतकेवली कहा जा सकता है ।।९-१० ।। आगे व्यवहार नयका अनुसरण क्यों नहीं करना चाहिए? इसका समाधान कहते हैं ववहारोऽभूयत्थो, भूयत्थो देसिदो दु सुद्धणओ। भूयत्थमस्सिदो खलु, सम्माइट्ठी हवइ जीवो । । ११ । । ६. सुद। ७. सुद । ८. सुद -- ज. वृ. । १. दिस्सदि ज. वृ. २. गाहेदुं ज. वृ. । ३. देसण ... ज. वृ. । ४. सुदेण । ५. सुद -- । ९. जयसेन वृत्तिमें १० वीं गाथाके आगे निम्नांकित दो गाथाएँ अधिक व्याख्यात हैं -- हि भाव खलु कादव्वा दंसणे चरित्ते य । ते पुण तिणि वि आदा तम्हा कुण भावणं आहे ।। जो आदभावणमिणं णिच्चुवजुत्तो मुणी समाचरदि । सो सव्वदुक्खमोक्खं पावदि अचिरेण कालेण ।।
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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