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________________ पंचास्तिकाय परमाणु र गंध आदि गुणों का वर्णन एयरसगंधवण्णं, दो फासं सद्दकारणमसद्दं । खंधंतरिदं दव्वं, परमाणुं तं वियाणेहि । । ८० ।। जो द्रव्य एकरस, एकवर्ण, एकगंध और स्पर्शोसे रहित है, शब्दका कारण है, स्वयं शब्दसे रहित है और स्कंधसे जुदा है अथवा स्कंधके अंतर्गत होनेपर भी स्वस्वभावकी अपेक्षा उससे पृथक् है उसे परमाणु जानो ।। ८१ ।। २३ पुद्गल द्रव्यका विस्तार उवभोज्जमिंदियेहिं य, इंदिय काया मणो य कम्माणि । जं हवदि मुत्तमण्णं, तं सव्वं पुग्गलं जाणे । । ८२ ।। पाँच इंद्रियोंके उपभोग्य विषय, पाँच इंद्रियाँ, शरीर, मन, कर्म तथा अन्य जो कुछ मूर्तिक द्रव्य है वह सब पुद्गल द्रव्य जानना चाहिए ।। ८२ ।। धर्मास्तिकायका वर्णन धम्मत्थिकायमरसं, अवण्णगंधं असद्दमप्फासं । लोगोगाढं पुठ्ठे, पिहुलमसंखादियपदेसं । ।८३ ।। धर्मास्तिकाय रसरहित है, वर्णरहित है, गंधरहित है, शब्दरहित है, स्पर्शरहित है, समस्त लोकमें व्याप्त है, अखंड प्रदेशी होनेसे स्पृष्ट है -- परस्पर प्रदेशव्यवधान रहित होनेसे निरंतर है, विस्तृत है और असंख्यातप्रदेशी है । । ८३ ।। अगुरुलघुगेहिं सया, तेहिं अणतेहिं परिणदं णिच्चं । गदिकिरियाजुत्ताणं, कारणभूदं सयमकज्जं । । ८४ ।। वह धर्मास्तिकाय अपने अनंत अगुरुलघु गुणोंके द्वारा निरंतर परिणमन करता रहता है, स्वयं गतिक्रियासे युक्त जीव और पुद्गलोंकी गति क्रियाका कारण है और स्वयं अकार्य रूप है ।। ८४ ।। उदयं जह मच्छाणं, गमणाणुग्गहयरं हवदि लोए । तह जीवपुग्गलाणं, धम्मं दव्वं वियाणेहि । । ८५ ।। जिस प्रकार लोकमें जल मछलियोंके गमन करनेमें अनुग्रह करता है उसी प्रकार धर्मद्रव्य जीव और पुद्गल द्रव्यके गमन करनेमें अनुग्रह करता है । । ८५ ।। अधर्मास्तिकायका वर्णन जह हवदि धम्मदव्वं, तह तं जाणेह दव्वमधमक्खं । ठिदिकिरियाजुत्ताणं, कारणभूदं तु पुढवीव ।। ८६ ।।
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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