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________________ कुन्दकुन्द-भारती मोक्षप्राप्तिका उपाय उवसंतखीणमोहो, मग्गं जिणभासिदेण समुपगदो। णाणाणुमग्गचारी, णिव्वाणपुरं वजदि धीरो।।७०।। जब यह जीव जिनेंद्रप्रणीत आगमके द्वारा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप मार्गको प्राप्त हो स्वसंवेदनज्ञानरूप मार्गमें विचरण करता है और विविध उपसर्ग तथा परिषह सहन करनेमें धीर वीर हो मोहनीय कर्मका उपशम अथवा क्षय करता है तब मोक्षनगरको प्राप्त करता है।।७० ।। जीवके अनेक भेद एको चेव महप्पा, सो दुवियप्पो त्तिलक्खणो होदि। चदुचंकमणो भणिदो, पंचग्गगुणप्पधाणो य।।७१।। छक्कापक्कमजुत्तो, उवजुत्तो सत्तभंगसब्भावो। अट्ठासओ णवत्थो, जीवो दसट्ठाणगो भणिदो।।७२।। जुम्म अविनाशी चैतन्यगुणसे युक्त रहनेके कारण वह जीवरूप महात्मा सामान्यकी अपेक्षा एक प्रकारका है। ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोगके भेदसे दो प्रकारका है। कर्मचेतना, कर्मफलचेतना और ज्ञानचेतनासे युक्त अथवा उत्पत्ति, विनाश और ध्रौव्यसे युक्त होनेके कारण तीन प्रकारका है। चार गतियोंमें चंक्रमण करनेके कारण चार प्रकारका है। औपशमिक आदि पाँच भावोंका धारक होनेसे पाँच प्रकारका है। चार दिशा तथा ऊपर और नीचे इस प्रकार छह ओर अपक्रम करनेके कारण छह प्रकारका है। स्यादस्ति आदि सात भंगोंसे युक्त होनेके कारण सात प्रकारका है। आठ कर्म अथवा आठ गुणोंका आश्रय होनेसे आठ प्रकारका है। नवपदार्थरूप प्रवृत्ति होनेसे नव प्रकारका है और पृथिवी, जल, तेज, वायु, साधारण वनस्पति, प्रत्येकवनस्पति, द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय तथा पंचेंद्रिय इन दश भेदोंसे युक्त होनेके कारण दश प्रकारका है।।७१-७२।। मुक्त जीवोंके ऊर्ध्वगमन स्वभावका वर्णन पयडिट्ठिदिअणुभागप्पदेसबंधेहिं सव्वदो मुक्को।। उटुं गच्छदि सेसा, विदिसा वज्जं गदिं जंति।।७३।। प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश इन चार प्रकारके बंधोंसे सर्वथा निर्मुक्त हुआ जीव केवल ऊपरकी ओर जाता है -- ऊर्ध्वगमन ही करता है और बाकीके जीव चार विदिशाओंको छोड़कर छह ओर गमन करते हैं।।७३ ।।
SR No.009555
Book TitleKundakunda Bharti
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year2007
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size92 MB
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