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________________ . ७.कारण-कार्य सम्बन्ध - । १.निमित्त कारण; २.निमित्त-नैमित्तिक भाव। १.निमित्त कारण-पीछे वाले अधिकार में यह बात स्पष्ट की जा चकी है कि कर्म नाम कार्य का है। कार्य चिदचिदात्मक होने के कारण पर्याय-स्वरूप है। पर्याय जड़ व चेतन दोनों ही पदार्थों में पाई जाती है । अत: कर्म के दो भेद हो जाते हैं पुद्गल कर्म या द्रव्य-कर्म और जीव-कर्म या भाव कर्म । कार्य सदा कारण-सापेक्ष होता है। वे कारण दो प्रकार के होते हैं-उपादान व निमित्त । यह वस्तु स्वभाव वाले अधिकार में बताया जा चुका है। उपादान कारण का कथन अब तक किया गया । अब निमित्त कारण की बात चलती है। निमित्त कारण भिन्न पदार्थों के किसी उचित संयोग विशेष को कहते हैं । अकेला पदार्थ निमित्त नहीं कहलाता, बल्कि उचित रीति से संयोग को प्राप्त दो पदार्थों में ही निमित्त-नैमित्तिकपने का व्यवहार होता है। केवल दो पदार्थों का सानिध्य या एक क्षेत्र-अवस्थिति भी निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध का कारण नहीं है, बल्कि उनका कोई विशिष्ट प्रकार का संयोग जिसके द्वारा कि एक के कार्य में दूसरे के प्रभाव या सहायता की अपेक्षा पड़े वही निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है । उस पदार्थ का संयोग न हो तो वह कार्य भी न हो, इस प्रकार की व्यतिरेक-व्याप्ति के द्वारा उसकी सिद्धि होती है, जैसे कि घड़े की उत्पत्ति में कुम्हार। विशिष्ट संयोग को प्राप्त होने वाले दो या अनेक पदार्थों में से वह पदार्थ जिसमें कि कार्य प्रकट होता है, उपादान कहलाता है, शेष एक या अनेक पदार्थ जिनकी सहायता की अपेक्षा के बिना वह कार्य होना असम्भव है वह निमित्त है, और वह कार्य उसका नैमित्तिक है । अर्थात् 'निमित्त' नाम कारण का है और 'नैमित्तिक' उस कार्य का जोकि किसी विवक्षित पदार्थ में उस निमित्त की सहायता से उत्पन्न हुआ है। उपादान नाम उस विवक्षित पदार्थ का है जोकि स्वयं उस कार्य या पर्याय के रूप में परिणत हुआ है, जैसे घटकी उत्पत्ति में कुम्हार, चक्र, चीवर आदि निमित्त हैं, घट नैमित्तिक है और मिट्टी उपादान है। इस पर से यह जान लेना चाहिए कि किसी भी विवक्षित कार्य का उपादान तो केवल एक ही होता है परन्तु निमित्त एक भी हो सकता है और अनेक भी। - कारण-कार्य के इस सिद्धान्त में इतना अवधारण अवश्य कर लेना चाहिए कि पर्याय का एकार्थवाची वह कार्य दो प्रकार का होता है-शुद्ध व अशुद्ध । असंयोगी शुद्ध द्रव्य में प्रति समय होने वाला सूक्ष्म परिणमन शुद्ध-कार्य है, और अनेक सजातीय या विजातीय द्रव्यों के संश्लेष बन्ध से उत्पन्न अशुद्ध द्रव्य में, स्थूल रूपेण व्यक्त होने वाली अर्थ व व्यञ्जन पर्यायें अशुद्ध कार्य हैं। शुद्ध कार्य तो सर्वथा
SR No.009554
Book TitleKarma Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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