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________________ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश की रचना .. - एक चमत्कार _ 'जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश' के रचयिता तथा सम्पादक श्री जिनेन्द्र वर्णी का जन्म १४ मई १९२२ को पानीपत के सुप्रसिद्ध विद्वान स्व० श्री जयभगवान जी जैन एडवोकेट के घर हुआ। केवल १८ वर्ष की आयु में क्षय रोग से ग्रस्त हो जाने के कारण आपका एक फेफड़ा निकाल दिया गया जिसके कारण आपका शरीर सदा के लिए क्षीण तथा रुग्ण हो गया। सन् १९४१ तक आपको धर्म के प्रति कोई विशेष रुचि नहीं थी। अगस्त १९४१ के पर्दूषण पर्व में अपने पिताश्री का प्रवचन सुनने से आपका हृदय अकस्मात् धर्म की ओर मुड़ गया। पानीपत के सुप्रसिद्ध विद्वान् तथा शान्त-परिणामी स्व० पं० रूपचन्द जी गार्गीय की प्रेरणा से आपने शास्त्र-स्वाध्याय प्रारम्भ की और सन् १९५८ तक सकल जैन-वाङ्मय पढ़ डाला। जो कुछ पढ़ते थे - उसके सकल आवश्यक सन्दर्भ रजिस्ट्रों में लिखते जाते थे। ___ 'जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश' के नाम से प्रकाशित जो अत्यन्त परिष्कृत कृति आज हमारे हाथ में विद्यमान है, वह इसका प्रथम रूप नहीं है। इससे पहले भी यह किसी न किसी रूप में पाँच बार लिखी जा चुकी है। इसका यह अन्तिम रूप छठी बार लिखा गया है। इसका प्रथम रूप ४-५रजिस्ट्रों में जो सन्दर्भ संग्रह किया गया था, वह था। द्वितीय रूप सन्दर्भ संग्रह के खुले परचों का विशाल ढ़ेर था। तृतीय रूप 'जैनेन्द्र प्रमाण कोश' नाम वाले वे आठ मोटे-मोटे खण्ड थे जो कि इन परचों को व्यवस्थित करने के लिए लिखे गये थे। इसका चौथा रूप वह रूपान्तरण था जिसका काम बीच में ही स्थगित कर दिया गया था। इसका पाँचवा रूप वे कई हजार स्लिपें थी जो किसी जैनेन्द्र प्रमाण कोश तथा इस रूपान्तरण के आधारपर वर्णी जी ने ६-७ महीने लगाकर तैयार की थी तथा जिनके आधार पर अन्तिम रूपान्तरण की लिपि तैयार करनी इष्ट थी। इसका छठा रूप यह है कि जो कि 'जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश' के नाम से आज हमारे सामने है। - यह एक आश्चर्य है कि इतनी रुग्ण काया को लेकर भी वर्णी जी ने कोष के संकलन, सम्पादन तथा लेखन का यह सारा कार्य अकेले ही सम्पन्न किया है । सन् १९६४ में अन्तिम लिपि लिखते समय अवश्य आपको अपनी शिष्या ब्र० कुमारी कौशल का कुछ सहयोग प्राप्त हुआ था, अन्यथा सन् १९४१ से सन् १९६५ तक १७ वर्ष के लम्बे काल में आपको तृण मात्र भी सहायता इस सन्दर्भ में कहीं से प्राप्त नहीं हुई। यहाँ तक कि कागज जुटाना, उसे काटना तथा जिल्द बनाना आदि काम भी आपने अपने हाथ से ही किया।
SR No.009554
Book TitleKarma Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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