________________
१. कर्म व कर्म फल
१. रहस्योपदेष्टा सर्वज्ञ, २. वैचित्र्य अहैतुक नहीं, ३. मूल हेतु कर्म, ४. ईश्वर-कर्तृत्व निषेध ।
कर्माष्टकविनिर्मुक्तं मोक्षलक्ष्मीनिकेतनं । सम्यक्त्वादिगुणोपेतं सिद्धचक्रं नमाम्यहम् ॥ १. रहस्योपदेष्टा सर्वज्ञ - प्रत्येक प्राणी के अन्त:करण की सर्वप्रथम माँग सुख व शान्ति है, यह कौन नहीं जानता। उसकी प्राप्ति के लिए कीड़े से मनुष्य पर्यन्त सर्व प्राणी उद्यमशील हैं । परन्तु आश्चर्य है कि सब कुछ करते हुए भी फल विपरीत निकलता है, अर्थात् सुख व शान्ति के स्थान पर व्यग्रता व अशान्तिकी असह्य अन्तर्वेदना की दाह में झुलसता हुआ वह चीत्कारों के अतिरिक्त कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाता। इसका कुछ न कुछ कारण तो होना ही चाहिए। जिन ज्ञानीजनों की दिव्य दृष्टि ने इसका साक्षात्कार किया तथा अपनी दिव्य वाणी द्वारा हम सरीखे छद्मस्थों को उस परम परोक्ष रहस्य का परिचय देकर अनुगृहीत किया, उनके प्रति स्वाभाविक बहुमान क्यों जागृत न होगा। उन अलौकिक दिव्य पुरुषों ने अपने जीवने में किसी अद्वितीय वस्तु के दर्शन किए, जिसके साथ तन्मय होकर सम्पर्ण विरोधी शक्तियों का मूलोच्छेदन कर, पूर्ण इन्द्रिय विजेता तथा कषाय-विजेता हो, वे परमधाम को प्राप्त हो गए । अनन्तों ऐसे हो चुके हैं और उस मार्ग का अनुसरण करके अनन्तों आगे हो जाने वाले हैं, इसमें सन्देह नहीं । क्योंकि अनेकों व्यक्तियों द्वारा किए गए एक ही प्रकार के कार्य फल कदापि भिन्न नहीं हो सकते। सर्व ही ऐसे जीव सम्पूर्ण अन्तर्शक्तियें विकसित हो जाने के कारण, सर्वज्ञ हो जाते हैं। उन सर्वज्ञों तथा अत्यन्त पवित्र आत्माओं का नाम ही 'जिनेन्द्र' है । वे प्रभु हैं और प्रत्येक मुमुक्षु के जीवनादर्श होने के कारण उपास्य हैं। जो विचित्र एवं अत्यन्त गुह्य रहस्य इस अधिकार में बताया वाला है, वह उनकी सर्वज्ञता का साक्षी है, क्योंकि छद्मस्थों के लिए उसका स्पर्श असम्भव है। आओ उस रहस्य को जानकर हम भी जिनेन्द्र बन जायें ।
२. वैचित्र्य अहैतुक नहीं- यद्यपि छद्मस्थ प्राणी उस रहस्य का साक्षात्कार
सकता पर अनुमान के आधार पर यह अवश्य जान सकता है कि जन्म-मरण, लाभ-हानि, धनवान - निर्धन, सुख-दुःख, स्वास्थ्य- रोग तथा मनुष्य-तिर्यंच आदि के जो भेद प्राणियों में प्रत्यक्ष हो रहे हैं, इनका कोई न कोई कारण अवश्य होना चाहिए । अन्यथा सबको समान होना चाहिए था। मृत्यु के पश्चात् जन्म अर्थात् पुनः शरीर धारण करना निष्कारण नहीं हो सकता ।