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(८७४) चरकसंहिता-मा० टी० । वाली गौओंको आगे किये मनुष्य,बच्चेवाली घोडी,लडकेको गोदमें लिये स्त्री इन सबका आगे मिलना रोगीकी मारोग्यताके लिये शुभ होताहै६९॥७०॥७१।७२।३. जीवञ्जीवकसिद्धार्थसारसप्रियवादिनाम् । हंसानांशतपत्राणांचा.. षाणांशिखिनांतथा ॥ ७३ ॥ मत्स्याजद्विजशंखानांप्रियङ्गूनांघतस्यच । रोचिष्कादर्शसिद्धानांरोचनायाश्चदर्शनम् ॥७४ ॥
तथा जविन्तशिाक, जीवक, सफेद सरसों अथवा सारस पक्षी, चकोर,चातक, हंस, शतपत्र (खुटकबडहिया) पक्षी,या गुलावके फूल अथवा शतपत्री (कमल); '. नीलकण्ठ, मोर,मछली,बकरी, श्वेतवस्त्रोंको धारणकिये ब्राह्मण,शंख, प्रियंगु, घृत, नमक, दर्पण, सिद्ध, गोरोचन इनका दर्शन होना रोगीको आरोग्य करनेवाला शुभः लक्षण जानना ।। ७३ ॥ ७४ ।। गन्धःसुरभिवर्णश्चसुशुक्कोमधुरोरसः। मृगपक्षिमनुष्याणांप्रशस्ताश्वगिरःशुभाः ॥७५॥ छत्रध्वजपताकानामुत्क्षेपणमभिप्लतिः ।। भेरीमृदङ्गशंखानांशब्दाःपुण्याहनिस्वनाः ॥७६॥ वेदाध्ययनशब्दाश्चसुखोवायु प्रदाक्षणः। पथिवेश्मप्रवेशेतुविद्यादारोग्यलक्षणम् ॥ ७७॥
सुगंधित पदार्थ, सुन्दर वर्णवाले श्वेत पदार्थ, मीठे रस, मृग, पक्षी और मनुः प्योंकी शुभवाणी, छत्र, ध्वजा और पताकाका ऊपरको उठाना, भेरी और मृदंग आदिका शब्द, शंखध्वनि, पुण्याहवाचन आदिका मधुरस्वर, वेदाध्ययनका शब्द, सुन्दर सुखदायी दहिनी ओरका पवन यह सब शकुन वैद्यको रोगीके घरको जावे: हुए या रोगीके घरमें प्रवेश करते हुए होना रोगीकी आरोग्यताका लक्षण जानना चाहिये ॥ ७५ ॥ ७६ ॥ ७७ ॥ मङ्गलाचारसम्पन्नःसातुरोवैश्मिकोजनः। श्रद्दधानोऽनुकूलश्चप्रभू तद्रव्यसंग्रहः ॥७८ ॥ धनैश्वर्य्यसुखावाप्तिरिष्टलाभःसुखेनच । द्रव्याणांतत्रयोग्यानांयोजनासिादिरेवच ॥ ७९ ॥
रोगीके घरमें संपूर्ण मनुष्य मंगलाचारसे संपन्न हों और सब श्रद्धावान हों और अनुकूल हों तथा चिकित्साके उपयोगी सब द्रव्य विधिवत् संग्रह किये हों.