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इन्द्रियस्थान-अं०३.
तत्रश्लोकः। यान्येतानिमयोक्तानिलिङ्गानिरसगन्धयोः ।
पुष्पितस्यनरस्यैतैःफलंमरणमादिशेत् ॥ २१॥ इति चरकसं०इन्द्रि-पुष्पितमिंद्रियं समाप्तम् ॥ २॥ : यहांपर श्लोक है-कि जो वैद्य इन हमारे कहेहुए रस और गन्धके लक्षणोस पुष्पित ( मरणासन्न ) मनुष्यके लक्षणोंको जानलेता है वह मृत्युके लक्षणोंको कथन कर सकता है ॥ २१॥
इवि श्रीमहर्षिचरक० इंद्रियस्थाने भाषाटीकायां पुष्पितामिन्द्रियनाम द्वितीयोऽयायः॥ २
तृतीयोऽध्यायः।
, अथातःपरिमर्षणीयमिन्द्रियंव्याख्यास्यामइतिहस्माहभगवानात्रेयः। .
अब हम परिमर्षणीय इन्द्रियाध्यायकी व्याख्या करते हैं इसप्रकार भगवान आत्रेयजी कथन करनेलगे।
वर्णेस्वरेचगन्धेचरसेचोक्तंपृथक्पृथक् ।
लिङ्गसमर्षतांसम्यक्स्पशेष्वपिनिबोधत ॥१॥ हे अग्निवेश वर्ण, स्वर और गंध तथा रसविज्ञानसे मरणासन्न मनुष्यों के लक्षण कथन किये गयेहैं। अब स्पर्शसे भी मरनेवाले मनुष्यों के लक्षणोंको श्रवण करो॥१॥ स्पर्शप्राधान्येनआतुरस्यायुषःप्रमाणावशेषांजज्ञासुःप्रकृतिस्थे.. नपाणिनाकेवलमस्यशरीरंस्पृशेत् । परिमर्षयेद्वान्येन ॥ २॥.. रोगीकोःस्पर्शद्वारा उसकी आयुका विशेषरूपसे प्रमाण जाना जासकताहै इसलिये रोगीकी आयु जाननेकी इच्छावाला रोगरहित मनुष्पके हाथसे केवल इसके शरीरका स्पर्श करावे अथवा स्वयं करे ॥ २॥
. स्पर्शक लक्षण.। परिमृषतातुखलुआतुरशरीरमिमेभावास्तत्रावबोद्धव्याः। तद्यथा सततस्पन्दनानांशरीरोद्देशानांस्तम्भः नित्योमणां. शीतीभावः। मृदूनांदारुणत्वम् । श्लक्ष्णानांखरत्वम् । सता. .