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। सूत्रस्थान-अ० २.
(२५, पित्त कफकी व्याधियोंमें जिस प्रकार देह दूषित न हो उस प्रकार वमन करानके लिये प्रयुक्त करे ॥५॥६॥
विरेचक द्रव्य। त्रिवृतांत्रिफलांदन्तींनलिनांसप्तलांवचाम् ।कम्पिल्वकंगकाक्षीञ्चक्षीरिणीमुदकीटिकाम्॥ ७॥ पीलून्यारग्वधंद्राक्षांद्रवन्तीनिचुलानिच । पक्वाशयगतेदोषेविरेकार्थप्रयोजयेत्॥ ८॥ निशोत, हरड, बहेडा, आमला,दंती, नीलिनी,सप्तला, वच, कमीला, इंद्रायण, हरी दूधली, करंजुवा, पीलू, अमलतास, मुनक्का, छोटीदंती, निचुल (हिंजल ) इन सवको पकाशयमें स्थित दोष निकालनेको विरेचनके लिये प्रयुक्त करे।।७॥८॥
उदावर्तादिमें वस्तिदेनयोग्य द्रव्य । पाटलाञ्चाग्निमन्थाञ्चबिल्वंश्योनाकमेवच । काश्मय॑शालप
चिपृश्निपर्णानिदिग्धिकाम् ॥९॥ बलांश्वदृष्ट्रांबृहतीमेरण्डं सपुनर्नवम्। यवानुकुलुत्थान्कोलानिगुडूची मदनानिच॥१०॥ पलाशंकत्तृणंचैवस्नेहांश्चलवणानिच । उदावतेविबन्धेषुयुंज्यादास्थापनेसदा ॥११॥ . पाढ, अरणी, वेलगिर, सोनापाठा, धमार वृक्ष, शालपर्णी, पृष्ठपर्णी, कटेली, खरटी, गोखरू,बडीकटेली, एरंड, पुनर्नवा, यव, कुलथी, वेर, गिलोय, मैनफल, पलास, रोहिसवण, और चतुःस्नेह, पंचलवण,इनको उदावर्त,मल मूत्रका अवरोध तथा आस्थापन, वस्तीकर्म आदिमें प्रयुक्त करे ॥ ९ ॥ १० ॥ ११ ॥
वातनाशक पांचकमिक संग्रह। अतएवौषधगतात्संकल्प्यमनुवासनम् । मारुतघ्नमितिप्रोक्तः संग्रहःपाञ्चकर्मिकः ॥ १२ ॥ तान्यपस्थितदोषाणांस्नेहस्वेदोपपादनैः । पञ्चकर्माणिकुर्वीतमात्राकालौविचारयन् ॥ १३ ॥ मात्राकालाश्रयायुक्तिःसिद्धिर्युक्तोप्रतिष्ठिता । तिष्ठत्युपरियुतिज्ञोद्रव्यज्ञानवतांसदा ॥ १४॥
और यही उपरोक्त द्रव्य अनुवासनवस्तिमें भी प्रयुक्त किये जाते हैं।तथा यही द्रव्य बातनाशक होनेसे पंचकर्मोंमें प्रयुक्त कियेजाते हैं । जिन मनुष्योंके शरीरोंमेंसे दोष निकालना हो उनको पहले स्नेहन स्वेदन कराकर फिर मात्रा और कालका विचार