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चरकसंहिवा-भा० टी०।
स्त्रीसहवास करनेके दिन.। स्नानात्प्रभृतियुग्मेष्वहःसुसंवसेतांपुत्रकामोतोचायुग्मेषुदुहि-।
तृकामौ ॥ ६॥ ' स्नानके दिनसे अर्थात् चौथेदिनके उपरान्त युग्म (६,८,१२, १४) रात्रिन्योंमें पुत्रकी कामनासे सहवास करे । अर्थाद इन रात्रियोंमें गमन करनेसे पुत्र उत्पन्न होताहै । और अयुग्म अर्थात् (५, ७, ९, ११, १३, १५,) इन रात्रियोंमें गमन करनेसे कन्या उत्पन्न होतीहै ॥६॥
सहवासकी विधि । " नचन्युब्जापार्श्वगतांवासंसेवेत। न्युन्जायावातोबलवान्सयो
निपीडयति। पार्श्वगतायादक्षिणेपार्श्वेश्लेष्मासंच्युतोऽपिदधा'तिगर्भाशयम् । वामेपार्श्वेपित्तदस्यांपीडितविदहतिरक्तशुक्रंतस्मादुत्तानासती जंगृह्णीयात्। तस्याहियथास्थानमवति. धन्तेदोषाप-तेचैनांशीतोदकेनपरिषिश्चेत् ॥७॥ स्त्री औंधी लेटकर अथवा वामे दहिने करवट लेकर सहवास न करे । क्योंकि औंधी होनेसे बलवान् वायु योनिको पीडित करताहै । दहिने पंसवाडे करवट लेकर सहवास करनेसे कफ टपककर गर्भाशयको आच्छादन कर देताहै । और वायीं करवट लेकर सहवास करनेसे पीडितहुआ पित्त रज और शुक्रको दूपित कर देताहै इसलिये सीधी उत्तान लेटकर पुरुषके वीर्य को ग्रहण करे। ऐसा होनेसे संपूर्ण दोष अपनेरस्थानों में स्थित रहतेहैं।गर्भ ग्रहण करनेके एक प्रहर वाद शीतलजलसे अपने नेत्रों, मुख तथा योनिको धोवे ॥ ७॥
गर्भधारण के अयोग्य स्त्री। तत्रात्यशिताक्षुधितापिपासिताभीताविमनाःशोका क्रुद्धा चान्यञ्चपुमांसमिच्छन्तामथनेचातिकामावानारीगर्भनधत्ते विगुणांवाप्रजांजनयति ॥ ८॥ गर्भाधानमें इसप्रकारकी स्त्री निषिद होती है।जिसने अधिक भोजन किया हो अथवा भूखी, तृषातुर, भयभीत, जिसका चित्त मैथुनमें न हो या अन्यप्रकारसे अन विगडा हो, शोक.अथवा क्रोधवाली,दूसरे पुरुषकी इच्छा रखनेवाली एवम् जो मैथुनसे तृप्तही न होतीहो । ऐसी खियें गर्भको धारण नहीं करतीं । अर्थात् इनकों गर्भ नहीं रहता यदि रहे भी तो कुरूप; और विगुंण संतान उत्पन्न होतीहै ॥ ८॥