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________________ (७५२) चरकसंहिता-मा० टी०। प्रकृति (स्वाभाविक धर्म ) है । इससे अन्यथा विकृति (वैकारिक धर्म ) होती हैं । गर्भाशयसे बाहर होकर अर्थात् जन्मलेनेके 'अनन्तर इस वालककी वृत्ति स्वतंत्र होजातीहै ॥ २६॥ __ बालकके आहार व उपचार। तस्याहारोपचारौजातिसूत्रीयोपदिष्टौअविकारकरॊचाभिवृद्धि कराभवतः । ताभ्यामेवचसेविताभ्यांविषमाभ्यांजातसय अपहन्यते तरिवाचिरव्यपरोपितोवातातपाभ्यामप्रतिष्ठित-- मूलः ॥२७॥ गभका जिसप्रकार आहार और उपचार करना चाहिये उसको आगे जातिसू. त्रीय नामक आठवें अध्यायमें कथन करेंगे । फिसप्रकारका आहार और प्राचार करनेसे आहार और उपचार निर्विकार होते हुए गर्भको बढानेवाले होतेहैं । उन्हीं आहार और उपचारोंके विषम होनेसे गर्भ अथवा जन्महुआ वालक इसप्रकार नष्ट होजाताहै जैसे-नया लगाया हुआ छोटासा वृक्ष जिसकी जडोंको पृथ्वीने पकडा न हो वह अधिक वायुके लगनेसे और तेज धूपके पडनेसे जडसे नष्ट होजाताहै ॥२७॥ आप्तोपदेशादद्भुतरूपदर्शनात्समुत्थानलिङ्गचिकित्सितविशे. षाच्चदोषप्रकोपानुरूपाश्चदेवादिप्रकोपनिमित्ताश्चविकाराः समुपलभ्यन्ते ॥ २८॥ आप्तपुरुषों के रचे हुए वालतंत्रोंके उपदेशसे और अद्भुतरूपोंके देखनेसे विचित्र रूपके अर्थात् दैवी कारण और लक्षणोंके देखनसे,यथोचित रीतिपर निदान,लक्षण और चिकित्साका ज्ञान होनेसे,दोषोंके कोपसे और देवादिकोंके कोपसे उत्पन्न हुए. विकार जानेजासकतेहैं ॥ २८ ॥ . कालाकाल मृत्युवर्णन । कालाकालमृत्योस्तुखलुभावाभावयोरिदमध्यवसितंनः। यःका श्चिम्रियतेसर्वःकालएवसम्रियतेनहिकालच्छिद्रमस्तीत्येके भाषन्ते । तच्च सम्यकूनहच्छिद्रतासच्छिद्रतावाकालस्योपप: द्यते कालस्यलक्षणभावात् ॥ २९ ॥ · कालमृत्यु और अकालमृत्युके होने न होने में हमारा मंतव्य सुनो कोई कहता है कि जब मनुष्य मारता है वह किसी प्रकारसे भी कभी मरे परन्तु उसका वही..
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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