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________________ (७४१) शारीरस्थान-अ०५. होजाताह । जिस बुद्धिके द्वारा योग साधन कियाजाता है तथा सांख्यके जाननेवाले सांख्यके ज्ञाता होतेहैं । जिससे अहंकार उत्पन्न नहीं होता और दुःखसुखके कारण आकर प्राप्त नहीं होते । जिस बुद्धिके होनेसे अन्य किसी विषयकी इच्छा नहीं रहती है जिस बुद्धिसे मनुष्य संपूर्ण त्याग करताहै और नित्य, अजर, शान्त, अक्षर ब्रह्मको प्राप्त होजाता है। वह बुद्धिही विद्या, सिद्धि, मति, मेधा, प्रज्ञा, ज्ञान, स्वरूप कही जाती है ।। २७ ॥ २८ ॥ २९ ॥ लोकेविततमात्मानंलोकश्चात्मनिपश्यतः। परावरहशःशान्तिर्ज्ञानमूलाननश्यति ॥३०॥ जो मनुष्य संपूर्ण जगत्में अपने आपको देखता है और अपनेमें संपूर्ण जगत्को देखताहै उस मनुष्यकी परावरदृष्टि और ज्ञानमूला शान्ति कभी नष्ट नहीं होती है ।। ३० ॥ पश्यतःसर्वभूतानिसर्वावस्थासुसर्वदा । ब्रह्मभूतस्यसंयोगोनशुद्धस्योपपद्यते ॥ ३१ ॥ संपूर्ण माणियों में ब्रह्ममयी दृष्टिस देखताहुआ और संपूर्ण अवस्था तथा संपूर्ण कालोंमें उस ब्रह्मभूत ज्ञानीको पुनर्जन्मके कारण उपस्थित नहीं होतेहैं ॥ ३१ ॥ मुक्तका लक्षण। नात्मनःकारणाभावाल्लिमप्युपलभ्यते । ससर्वकारणटागान्मुक्तइत्यभिधीयते ॥३२॥ विपापविरजःशान्तंपरमक्षरमव्ययम् । अमृतंब्रह्मनिवाणंपायैःशान्तिरुच्यते ॥३३॥ जब आत्माके कारण भावसे और कोई चिह्न प्रतीत नहीं होता तो वह सम्पूर्ण कारणोंके त्यागसे मुक्त है ऐसा कहाजाताहै । विपाक, विरज, शान्त, पर, अक्षर, अव्यय, अमृत, ब्रह्म और निर्वाण यह सब शान्ति अर्थात् मोक्षके पर्यायवाचक शब्द हैं ॥ ३२ ॥ ३३ ॥ एतत्तत्सौम्यविज्ञानयज्ज्ञात्वामुक्तसंशयाः। मुनयःप्रशमंजग्मुवीतमोहरजःस्पृहाः ॥ ३४ ॥ हे सौम्य ! इस विज्ञानके जाननेसे ही मुनीश्वर संशयरहित और मोह राग तथा स्पृहारहित हुए हैं। और मोक्षको प्राप्त हुए हैं ॥३४॥ ____ अध्यायका उपसंहार। सप्रयोजनमुद्दिष्टलोकस्यपुरुषस्य च । सामान्यमलमुत्पत्तौनि
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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