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सूत्रस्थान - अ० १.
औषधियों के ज्ञानकी कठिनता ।
ननामज्ञानमात्रेणरूपज्ञानेनवापुनः । औषधीनांपर प्राप्तिकाश्चेद्वेदितुमर्हति ॥ ११९ ॥
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क्योंकि कोई भी मनुष्य संपूर्ण औषधियोंके नाम और रूपोंको नहीं जानसकता कोई २ पुरुष ऐसे होंगे जो वहुतसी औषधियोंको जानते हैं परन्तु उनमें उसीको ओषधियोंके तत्त्वका जाननेवाला कहना चाहिये जो उनके नाम रूप और प्रयोग करने की विधि जानता हो ॥ ११९ ॥
औषधी जाननेवालेकी प्रशंसा |
योगज्ञस्तस्यरूपज्ञस्तासांतत्त्वविदुच्यते ।
किंपुनर्यो विजानीयादोषधीः सर्वदाभिषक् ॥ १२० ॥ रूपन्तासान्तुयोविद्याद्देशकालोपपादितम् । पुरुषपुरुषंवीक्ष्य सविज्ञेयोभिषक्तमः ॥ १२१ ॥
जो वैद्य औषधियोंका नाम रूप प्रयोग और किस किस कालमें कौन २ औषधि कैसे २ संपादन कर उसका कैसे २ प्रयोग करना यह विधि जानता है उसका तो कहना ही क्या है अर्थात् उसको धन्य है । हरेक मनुष्यको देख देख कर शास्त्रविधिसे जो उसके अनुकूल हो वह औषध देना चाहिये ॥ १२० ॥ १२१ ॥
औषध विज्ञान सम्वन्धी वैद्यको उपदेश | यथाविषयथाशस्त्रंयथाग्निरशनिर्यथा । तथैौषधमविज्ञातंविज्ञातममृतंयथा ॥ १२२ ॥ औषधानभिज्ञातं नामरूपगुणैस्त्रिभि: । विज्ञातंवापि दुर्युक्तं युक्तिवा ह्येन भेषजम् | योगादपिविषं तीक्ष्णमुत्तमं भेषजं भवेत् ॥ १२३ ॥ भेषजवापिदुर्युक्तीक्ष्णं सम्पद्यतेविषम् । तस्मान्नभिषजायुक्तं युक्तिबाह्येनभेषजम् ॥ ॥ १२४ ॥धीमताकिञ्चिदादेयं जीवितारोग्यकांक्षिणा ॥ कुर्य्यान्निपतितो मूर्ध्निसशेषंवासवाशनिः ॥ १२५ ॥