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________________ शारीरस्थान-अ० ३. (७११) कर्मही इन्द्रियों के भावाभावका कारण है ।अर्थात् किसी पूर्वजन्मके पापकर्मके प्रभा बसे वैसाही संयोग मिलकर इन्द्रियोंका विघात होताहै पूर्वजन्मकृत कोई उस प्रका. रका पापकर्म न होनेसे इन्द्रियों में कोई विकार नहीं होसकवा । इसीलिये जड़ादि. कोंसे उत्पन्न हुई संतानके रूप पितामाताक समान नहीं होते ॥ २६ ॥ नचालासस्स्विन्द्रियेषुअज्ञोऽसत्लुवासवत्यज्ञोनालस्वःकदाचिदात्मासंत्वविशेषाचउपलायतज्ञानविशेषति॥ २७॥ आत्मा इन्द्रियों के होनेसे ज्ञाता और इन्द्रियोंके न होनेसे अज्ञाता नहीं होसकता क्योंकि आत्मा मनसे रहित कभी नहीं होता। इसलिये वाह्य इन्द्रियके नष्ट होने पर भी मनयुक्त आत्माको ज्ञानकी उपलब्धी होती रहती है ॥ २७ ॥ भवतिचात्र । नकर्तुरिन्द्रियाभावात्कार्यज्ञानप्रवर्तते। यैः क्रियावततेयातु साविनातनवर्तते ॥ २८॥ जानन्नपिमृदोभावात्कुम्भकृन्नप्रवर्त्तते । श्रूयताश्चेदमध्यात्ममात्मज्ञानवलंमहत् ॥ २९ ॥ यहां कहा कि इन्द्रियोंका अभाव होनेसे कत की कार्यज्ञानमें प्रवृत्ति नहीं होती। क्योंकि जो किया जिसके द्वारा होसकती है वह उसके विना हो ही नहीं सकती जैसे कुम्हार घटके बनानेकी क्रियाको जानता हुआ भी मट्टीके बिना उसके बनाने के लिये प्रवृत्त नहीं होबा । सो तुम इस महत् अध्यात्म ज्ञानके बलको अवण करी ।। २८ ॥ २९ ॥ देहन्द्रियाणिसंक्षिप्यमनःसंग्रह्मचञ्चलम् । प्रविश्याध्यात्ममा- .. त्मज्ञःस्वेज्ञानेपर्य्यवस्थितः ॥ ३० ॥ सर्वत्र विहितज्ञानःसर्वभावान्परीक्षते । गृह्णीष्ववेदमपरंभरद्वाजविनिर्णयम् ॥ ३१॥ आत्माको जाननेवाला बुद्धिमान् देह और इन्द्रियोंको वशमें करके मनकी चंच लताको रोककर अध्यात्म तत्वोंमें प्रवेश करके अपने ज्ञानको अर्थात् आत्मज्ञानकों प्राप्त होजाताहै । फिर वह सर्वज्ञ सवका पूर्णज्ञान रखतेहुए अहवज्ञान द्वारा संपूर्ण भावोंकी परीक्षा करता है।हे भरद्वाज! एक और विनिर्णयको श्रवण करो३०॥३१॥ निवृत्तेन्द्रियवाक्चेष्टःसुप्तःस्वप्नगतोयदा । विषयान्मुखदुःखेच वेत्तिनाज्ञोऽप्यतःस्मतः॥३२॥ नात्माज्ञानाहतेचैकंज्ञानंकिञ्चित्प्रवर्तते । नोकोवर्ततेभावोवततेनाप्यहेतुकः॥३३॥ १ भरद्वाजचन्दनेह नात्रेयगुरुरुच्यते किन्तु अन्य एव भरद्वाजगोत्रः कश्चित् । है कि इन्द्रियोकासक द्वारा होतका जानता हुआअध्यान
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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