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चरकसंहिता - भा० टी० ।
: यह अनन्तवान् पुरुष रजोगुण और तमोगुणके संयोग से अनादि काल से बंधा है परन्तु अभ्यास, वैराग्य और ज्ञान द्वारा रज और तमका संयोग निवृत्त होजाने पर गुणका प्रकाश होने से शुद्ध ज्ञान होकर मोक्षको प्राप्त होता है ॥ ३४ ॥ . पुरुषकी प्रधानता । अत्रकर्मफलञ्चात्रज्ञानञ्चात्रप्रतिष्ठितम् ।
अत्रमोहः सुखं दुःखंजीवितं मरणस्वतः ॥ ३५ ॥
इस पुरुष कर्मफल तथा ज्ञान यह दोनों प्रतिष्ठित हैं । और मोह, सुख, दुःख, जीवन और मरण यह चतुर्विंशति तत्त्वात्मक पुरुषके आश्रित हैं ॥ ३५ ॥ एवयोवेदतत्त्वेन सवेदप्रलयोदयौ ॥ ३६ ॥
जिस पुरुषको इस प्रकार तत्त्वका ज्ञान है वह उत्पत्ति और प्रलयको जानता है ।। ३६ ।।
पुरुषकी कारणता । .
पारम्पर्य्यचिकित्साचज्ञातव्यंयच्चकिञ्चन ॥ ३७ ॥ भास्तमः सत्यमनृतं वेदः कर्मशुभाशुभम् । नस्यात्कर्त्तावेदिताचपुरुषो नभवेद्यदि ॥ ३८॥
यदि पुरुष ज्ञाता न होता तो लोक परम्परा, चिकित्सा, जानने योग्य विषय, तम, ज्योतिः, सत्य, अनृत, वेद, कर्म, शुभ, अशुभ, कर्ता और ज्ञाता, यह कुछ भी न होते ॥ ३७ ॥ ३८ ॥
नाश्रयोन सुखनार्त्तिर्नगतिर्नागतिर्नवाक् । नविज्ञानंनशास्त्राणि नज़न्ममरणंनच ॥ ३९॥नवन्धोनचमोक्षः स्यात्पुरुषोनभवेद्यदि । कारणंपुरुषस्तस्मात्कारणज्ञैरुदाहृतः ॥ ४० ॥
एवम् आश्रय, सुख, रोग, गति, अगति, वाणी, विज्ञान, शास्त्र, जन्म, मरण, बंध और मोक्ष यह भी न होते । इसलिये कारणके जाननेवाले बुद्धिमानोंने पुरु: को कारण कहा है ॥ ३९ ॥ ४० ॥
नचेत्कारणमात्मास्यात्खादयः स्युरहेतुकाः ।
नचैषु सम्भवेज्ज्ञानंनश्वतैः स्यात्प्रयोजनम् ॥ ४१ ॥
याद आत्मा कारण न हो तो आकाश आदि अहेतुक हो जायेंगे । आकाशादिकों में जडत्व होनेसे ज्ञान तो होताही नहीं। इसलिये उन जडोंसे चैतन्यकी उत्पत्ति नहीं हो सकती । अथवा यो कहिये कि वह जड होनेसे चैतन्य पुरुषको अथवा
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