________________
विमानस्थान अ०८.
(६५१) नाभ्यासिच्यसाधयेद्दासततमुपवट्टयन्तदुपयुक्तभूयिष्ठेऽम्भसिगतरसेष्वौषधेषु पयसिचानुपदग्धेस्थालीमुपहृत्यपारनु संपूर्तपयःसुखोष्णंघृततैलवसामज्जालवणफाणितोपहितंब. .
स्तिवातविकारिणविधिज्ञो विधिवद्दद्यात् । शीतन्तुमधुसर्पि. यामुपसंसृज्यपित्तविकारिणे दद्यादितिमधुरस्कन्धः ॥ १६० ।। __ अव मधुर स्कन्धका वर्णन करतेहैं । जैसे जीवक, ऋषभक, जीवन्ती, शतावर, . भूईआमला, काकोली, क्षीरकाकोली, माषपर्णी, मुद्रपर्णी,शालिपर्णी, पृष्णपर्णी, सणपर्णी, मेदा, महामेदा; काकडासिंगी, सिंघाडा,गिलोय, धनियां, बडीधनियां,. मुण्डी, महामुण्डी, सहदेवी, विश्वेदेवा, मिश्री, खरहटी, अतिवला, विदारीकंद, वाराहीकंद,क्षुद्रसहा, महासहा विधायरा, दोनों प्रकारकी पुनर्नवा, अश्वगंधा, दोनों कटेली, लाल और सफेद एरंड, गोखरू,वंदा, शतावरी,सौंफ,सोय,मुलहठी, गेहूं, किसमिस, छोहारा, फालसा, कौंचके वीज,कमलगट्टे,कसेरू,राजकसेरू,कालं कत, काश्मरीफल, शीतपाकी, नीले रंगकी कटसरैया, तालखजूर, खजूर, ईख, इक्षुवालिकादर्भ, कुशा, कांस, शालिचावल,गुंद्रपटेर, सर्पता, सरमूल, सरसों गंगे: रन, पालक, वनकपास खीरा, महाशतावरी, हंसपदी, काकजंघा,कुलिंगा, क्षीरवि दारी, कपोतबल्ली,सारिवा,मधुवल्ली,सोमलता और भी अन्यान्य मधुवर्गमें कहेहुए द्रव्योंको लेकर पहिले शुद्धजलसे धो डाले फिर टुकडे करके वारीक कूट दूध, मिलाकर किसी पात्रमें डाल अग्निपर पकावे तथा मंदमंद आंचसे पकाताजावे। जब देखे कि औषधियोंका रस दूधमें आगया है तो उस दूधको उतारकर सुखोज्ण होनेपर उस दूधमें घी,तेल,चो,मज्जा,लवण,फाणित इनसे सव अथवा जो उचित हो वह मिलाकर बस्तिकर्मको जाननेवालावैद्य वात विकारवाले मनुष्यको वस्तिलर्म करे । यदि पित्तविकारवालेकोबस्तिकर्म करना हो तो शीतल होनेपर शहद और घृत मिलाकर पस्तिकर्म करोवस्तिकर्मके लिये उपरोक्त संपूर्ण द्रव्योंको एकही समर्ष एकत्रित करनेकी आवश्यकता नहीं उनमेंसे जिस समय जिसको वैद्य जिसमकार उपयोग करना चाहे वैसे-उचित रीतिपर करें । इतिमधुरस्कन्धः ॥ १६० ।।
. अम्लस्कन्ध। . आम्राम्रातकलकुचकरमर्दवृक्षाम्लाम्लवेतसकुवलबदरदाडिममातुलुङ्गकण्डीरामलकनन्दीतकलालतिकाशीतदन्तशटैरावतककोषाम्रधन्वनानां फलानि पत्राणिचाश्मन्तकचाङ्के-..