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________________ (६३८) चरकसंहिता - भा० टी० । 1. जो शरीर प्रमाणयुक्त यथार्थ होता है उस शरीखाले मनुष्यकी, आयु, बल, ओज, सुख, ऐश्वर्य, वित्त और अन्य भी सम्पूर्ण भाव स्वाधीन होते हैं । हीन वा अधिक होनेसे विपरीत होते हैं ॥ १३३ ॥ सात्म्यद्वारा पररीक्षा । सात्म्यतश्चेति । सात्म्यंनामतद्यत्सातत्येनेोपयुज्यमानमुपशेते तत्रयेघृत क्षीरतैलमांसरससात्म्याः सर्वरससात्म्याश्च तेवलवन्तः क्लेशसहाश्चिरजीविनश्चभवन्ति । रूक्षनित्याः पुनरेकरससात्म्याश्चयेते प्रायेणाल्पबलाश्चाक्लेशसहा अल्पायुषोऽल्पसाधनाश्च भवन्ति ॥ १३४ ॥ - मनुष्योंके सात्यकी भी परीक्षा करनी चाहिये। जो पदार्थ निरन्तर सेवन किया जानेपरभी शरीरके अनुकूल अर्थात् हितकारी प्रतीत हो उसको सात्म्य कहते हैं। जिन मनुष्यों को घृत, दूध, तेल, मांसरस तथा मधुर आदि सम्पूर्ण रस सात्म्य होते हैं वह मनुष्य बलवान् और क्लेश सहन करने में समर्थ तथा दीर्घजीवी होते हैं । जो मनुष्य निरन्तर रूक्ष पदार्थोंको सेवन करते हैं तथा जिनको एक रस ही सात्म्य "है वह मनुष्य प्रायः अल्पवलवाले क्लेश सहन करने में असमर्थ, अल्पायु और अल्पसाधनवाले होते हैं ॥ १३४ ॥ व्यामिश्रतात्म्यास्तु येते मध्यबलाः सात्म्यनिमित्ततः ॥ १३५ ॥ जिन मनुष्यों को मिले जुले रस सात्म्य हों और पृथक् २ सात्म्य न हों अथवा उपरोक्त दोनों प्रकारके मनुष्यके कुछ २ लक्षण मिलते हों वह मनुष्य मध्यवल साम्यके निमित्त मध्यमवलवाले होतेहैं ॥ १३५ ॥ सत्व परीक्षा । सच्चतश्चेति । सत्वमुच्यते मनस्तच्छरीरस्यतन्त्र के मात्मयोगातत्त्रिविधंबलभेदेनप्रवरंमध्यमवरामति । अतश्चप्रवरमध्यावरसत्त्वाश्चपुरुषाभवन्ति । तत्रप्रवरसत्त्वाः सत्त्वसाराःसारे'बुउपदिष्टाः स्वल्पशरीराद्यपि ते निजागन्तुनिमित्तासुमहतीष्वपि पीडास्वव्यग्रादृश्यन्तेसत्त्वगुणवैशेष्यात् ॥ १३६ ॥ मनुष्य के सत्वकी भी परीक्षा करनी चाहिये। सत्व नाम मनका है। वह मन आत्मा. के संयोगसे शरीरका तंत्रक है अर्थात शरीरको अपने भावोंसे तंत्रण और धारण १ तन्त्रकमिति प्रेरकं धारकं च ।
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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