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विमानस्थान - अ० ८०
( ६२१) प्रकारकी परीक्षासे कितने प्रकारके परीक्ष्य विषय परीक्षा करने चाहिये । और इस स्थानमें परीक्ष्य विशेष क्या है कैसे परीक्षा करनी चाहिये परीक्षाका प्रयोजन क्या है और वमनादिकों की कहां २ प्रवृत्ति और निवृत्ति है । प्रवृत्ति और निवृत्तिके लक्षण दिखाई देने पर क्या करना चाहिये, वमन, विरेचनादिकोंमें कौन २ द्रव्य उपयोगी होते हैं। इस प्रकार प्रश्न करनेपर यदि देखे कि प्रश्नकर्त्ताको परास्त कर देना और मुग्ध कर देना उचित है तो उससे कहे कि परीक्षा बहुत प्रकारकी होती है और परीक्षणीय विषय भी अनेक प्रकारके होते हैं । आप किस प्रकारकी परीक्षाके भेदको पूछना चाहते हैं और परीक्षाके एवम् परीक्षणीय विषयके किन २. भेदोंको जानना चाहते हैं। क्योंकि यदि आप जिस परीक्ष्य विषयको जिस प्रकार जानना चाहते हैं हम उस विधि भेद प्रकारसे कथन न करके यदि अन्य प्रकारसे कथन करनेलगेंगे तो आपकी इच्छा परिपूर्ण न होगी ॥ ९१ ॥
सयद्युत्तरंब्रूयात्तत्परीक्ष्योत्तरंवाच्यंस्याद्यथोक्तं प्रतिवचनमवेक्ष्य सम्यग्यदितुद्यान्नचैनं मोहयितुमिच्छेत्प्राप्तन्तुवचनकालंमन्ये: तकाममस्मैब्रूयादाप्तमेवानिखिलेन ॥ ९२ ॥
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इस प्रकार कथन करने से वह जो कुछ उत्तर देवै उसकी परीक्षा कर लेना चाहिये। यदि वह पराजय करनेकी इच्छासे उत्तर देवे तो पूर्वोक्त विधानसे निरुत्तर कर डाले यदि यह यथार्थ भलाई के साथ उत्तर देवे तो उसको मुग्ध न करके उससे: यथार्थ विधिवत् प्रमाणिक रीतिसे संपूर्ण कथनको करे ॥ ९२ ॥
परीक्षांके भेद |
द्विविधापरीक्षाज्ञानवतां प्रत्यक्षमनुमानञ्च, एतत्तद्वयमुपदेशश्च परीक्षात्रयमेवमेषाद्विविधापरीक्षात्रिविधावासहोपदेशेन ॥ ९३ ॥ परीक्षा दो प्रकारकी होती है । १ प्रत्यक्ष । २ अनुमान और आप्तोपदेशके मिल देनेसे तीन प्रकारको होजाती है ॥ ९३ ॥ दशविधन्तुपरीक्ष्यकारणादियदुक्तमप्रेतदिहभिषगादिषुसंसा
सन्दर्शयिष्यामः । इहकार्य्यप्राप्तौ कारणभिषक् करणंपुनभेषजम् । कार्ययोनिर्षातुवैषम्यम् । कार्यधातुसाम्यम् । कार्य्यफलं सुखावातिः। अनुबन्धआयुः । देशोभूमिरातुरश्च । कालः संवत्सरश्वातुरावस्थाच। प्रवृत्तिः प्रतिकर्मसमारम्भः । उपायोभिषगादीनांसौष्ठवमभिसन्धानञ्चसम्यगिहापि अस्योपायस्याविषयः पर्वें