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________________ सूत्रस्थान-अ० १: स्त्रीनन्ववादयत् । नभसिस्निग्धगम्भीरोहर्षाद्भुतैरुदीरितः॥ ॥३५॥ शिवोवायुवौसर्वाभाभिरुन्मीलितादिशः ।निपे तुःसजलाश्चैवदिव्याःकुसुमवृष्टयः ॥ ३६ ॥ - इनकी बनाईहुई संहिताओंको सुनकर संपूर्ण ऋषि प्रसन्न हुए और मनमें कहने लंगे कि बहुत अच्छे प्रकारसे सूत्रांका क्रम रखकर ग्रंथोंको बनायाहै,फिर संपूर्ण सृष्टिके हितैषी वह ऋषि इनकी स्तुति करके कहनेलगे कि आपने सब प्राणियोंपर दया की है आपको धन्य है । ऋषियोंकी कीहुई इस पवित्र आनन्दध्वानको सुनकर स्वर्गके देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और बहुत अच्छा हुआ २ यह प्रेमसे कहाहुआ शब्द तीनों लोकोंमें उत्तम गुजार करता हुआ आकाशसे प्रतिशब्द देनेलगा । उस समय कल्याणकारी मंद सुगंध पवित्र वायु चलनेलगा और सब दिशा प्रकाशमय हो शोभा देनेलगी देवलोकसे जलसे भीगे हुए सुगंधित दिव्यपुष्पोंकी वृष्टि होनेलगी ॥ ३२ ॥.३३ ॥ ३४ ॥ ३५ ॥ ३६ ॥ अथाग्निवेशप्रमुखाविविशनिदेवताः। वुद्धिःसिद्धिःस्मृतिमेंधाधृतिःकार्तिःक्षमाया ॥ ३७ ॥ तानिचानुमतान्येषां तन्त्राणिपरमर्षिभिः । भावायभूतसंघानां प्रतिष्ठां भुविलेभिरे ॥ ३८॥ इसके अनंतर इस पुण्य कर्मके फलसे अग्निवेश आदि छहों ग्रंथकर्ताओंके शरीरमें बुद्धि, सिद्धि, स्मृति, मेधा, धृति, कीर्ति, क्षमा, दया यह ज्ञानदेवता प्रविष्ट हुए अर्थात् यह सव उत्तम गुण उनमें निवास करनेलगे । और ऋषियोंस सम्मान पाएहुए इनके ग्रंथ संपूर्ण मनुष्यों के कल्याणकारक होतेहुए पृथिवीमें प्रतिष्ठाको प्राप्त हुए ॥ ३७॥३८॥ आयुर्वेदका लक्षण । . हिताहितसुखदुःखमायुस्तस्यहिताहितम् । - मानञ्चतच्चयत्रोक्तमायुर्वेदःसंउच्यते ॥ ३९॥ ., अब प्रथम आयुर्वेद शब्दकी निरुक्ति कहतेहैं। जिस शास्त्रमें आयुके हित (अच्छी) अवस्था, अहित (खराव) अवस्था, सुखयुक्त अवस्था, दुःखयुक्त अवस्था आय और आयुका हित, अहितं, तथा आयुका परिमाण कथन कियाहुआ हो या यों काहिये जिसके द्वारा यह.सव जानाजाय उसको आयुर्वेद कहते ॥ ३९ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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