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________________ घरकसंहिता-मा० टी०। अतिप्रवृत्तिःसङ्गोवाशिराणांग्रन्थयोऽपिवा । विमार्गगमनंवापिस्रोतसांदुष्टलक्षणम् ॥ २९ ॥ 'मलादिकोंकी अधिक वृद्धि अथग विरोध होना तथा नसोंमें गांठका पडना मोर मलोंको अपने मार्ग त्यागकर दूसरेमार्गद्वारा निकलना यह दूषितहुए स्रोतोंके बक्षण होते हैं ॥ २९ ॥ स्रोतोंकी आकृति । स्वधातुसमवर्णानिवृत्तस्थूलान्यनिच । स्रोतांसिदीर्घाण्याकृत्याप्रतानसशानिच ॥ ३०॥ . संपूर्ण स्रोत अपने २ धातुके समान वर्णवाले गोलाकार मुखवाले,स्थूल अथवा सुक्ष्म आकारके होतेहैं ॥ ३० ॥ . दूषित स्रोतोंकी चिकित्साका विधान । प्राणोदकान्नवाहानांदुष्टानांश्वासिकाक्रिया । कार्यातृष्णोपशमनीतथैवामप्रदोषिकी ॥ ३१॥ .. प्राणवाही स्रोत, जलवाही स्रोत, और भन्नषाही स्रोतोंके दूषित होनेपर श्वास सैगके समान चिकित्सा करनी चाहिये तथा तृषानाशक और मामनाशक चि. कित्सा करनी चाहिये । अर्थात प्राणवाही स्रोतोंके दूषित होनसे श्वासचिकित्सा, जलवाही स्रोतोंके दापित होनेसे वृषानाशक चिकित्सा, अन्नवाही स्रोताके दूषित होनेसे आमदोष नाशक चिकित्सा करनी चाहिये ॥ ३१॥ विविधाशितपीतीयेरसादीनांयदौषधम् । दूषितस्रोतसांकुत्तिद्यथास्वमुपक्रमम् ॥ ३२ ॥ . .. . .. रस आदि धातुओंके वहन करनेवाले स्रोतोंके दूषित होनेपर विविधाशितपीतीय अध्यायमें कथन की हुई रस रक्तादिकोंकी चिकित्सा क्रमपूर्वक करनी चाहिये३२॥ मूत्रविट्स्वेदवाहानांचिकित्सामौत्रकच्छिकी । तथातिसारको का-तथाज्वरचिकित्सिकी इति ॥ ३३॥ .. : मूत्रवाही स्रोतोंके दूषित होनेपर मूत्रकृच्छ्में कही चिकित्सा करनी चाहिये। मलबाही स्रोतोंके दूषित होनेपर अतिसार रोमके समान चिकित्सा करनी चाहिये। खेदवाही स्रोतोंके क्षित होनेपर ज्वरके समान चिकित्सा करनी चाहिये ॥३३॥ विविधाशिलासा करनी व चिकित्सा,
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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