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(६४६) चरकसंहिता-भा० टी० । चाहिये मक्खियोंके शरीरपर पडनेसे शरीरके मीठेरसका अनुमान होसकता है । रक्तपित्त रोगवालेका रक्त तथा. विना रक्तपित्तवालेके रक्त में संदेह हो तो कुत्ते और कागको भक्षण करानेसे जान सकतेहैं यदि उसको श्वान आदि भक्षण करे तो आरोग्य पुरुषका.रक्त समझना चाहिये और यदि वह श्वान आदिक उस रक्तको न छुएं तो रक्तपित्त है ऐसा जानना चाहिये इसी प्रकार रोगोके शरीरगत अन्य रसोंका भी अनुमान करे रोगीके शरीरगत गन्धोंको स्वाभाविक प्रकृतिसे विकारको प्राप्त हुए गंधको घ्राणेन्द्रियद्वारा परीक्षा करे। शरीरकी प्रकृति,विकृति, उष्णता,शीतता आदि एवम् धमनीकी गति आदि-हाथके स्पर्शदाग परीक्षा करे इस प्रकार प्रत्य.. क्षसे तथा अनुमानसे एकदेशसे परीक्षाका कथन किया गया है ॥७॥
। अन्य अनुमान ज्ञेय भावोंका वर्णन । इमेतुखलुअन्येप्येवमेवभूयोऽनुमानज्ञेयाभवन्तिभावाःतयथा-अग्निजरणशक्या, बलंव्यायामशक्त्या ,श्रोत्रादीच्छदादिग्रहणेन, मनोऽर्थाव्यभिचारेण, विज्ञानंव्यवसायेन, रजः सङ्गेन,मोहमविज्ञानेन,क्रोधमभिद्रोहेण,शोकं दैन्येन,हर्षमा-. मोदेन,प्रीतिं तोषेण, भयंविषादेन, धैर्यमविषादेन, वीर्य— मुत्साहेन,स्थानमविभ्रमेण,श्रद्धामभिप्रायेण, मेधां ग्रहणेन, "संज्ञानामग्रहणेन, स्मृति स्मरणेन, ह्रियनपत्रपेण, शीलम.
नुशीलनेन, द्वेषप्रतिषेधेन,उपाधिमनुबन्धेन,धृतिमलौल्येन, "वश्यतांविधेयतया, वयोभक्तिसात्म्यव्याधिसमुत्थानानिकाउदेशोपशयवेदनाविशेषेणगूढलिङ्गव्याधियुपशयानुपशयाभ्यां दोषप्रमाणविशेषमपचारविशेषेणआयुषःक्षयमरिष्टैरुपस्थित- : श्रेयस्त्वंकल्याणाभिनिवेशेनअमलंसत्त्वमविकारेगोति ग्रह-: ण्यास्तुमृदुदारुणत्वंदुःस्वप्नदर्शनमभिप्रायद्विष्टेष्टसुखदुःखानि .. चातुरपारप्रश्नेनैवविद्यादिति ॥८॥ ...... यह आगे कथन किये हुए विषयों तथा उनके सिंगय और भी जो भाव हैं उनकी अनुमान द्वारा परीक्षा करनी चाहिये । जैसें भोजनके परिपांक द्वारा जंठरा-.. निकी परीक्षा, पारिश्रम आदिसें बलकी परीक्षा; शब्दादिकसे कर्णादिकोंकी परीक्षा, मनके विषयोंके अव्यभिचारसें मनकी परीक्षा, व्यवसाय अर्थात बांदके कार्यों