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________________ (५३२) चरकसंहिता--भा० दी। · सत्ययुगके चलेजानेपर त्रेतायुगमें 'लोभके होनेसे अभिद्रोह उत्पन्न हुआ। अभिद्रोहसे असत्यभाषण उत्पन्न हुआ। असत्यभाषणसे काम, कामसे क्रोध, क्रोधसे मान, मानसे द्वेष, द्वेषसे कठोरपन,कठोरपनसे अभिघात, अभिघातसे भय, ताप, शोक, चित्तमें उद्वेग आदिक उत्पन्न हुए ॥ ३१॥ ततस्त्रेतायाधर्मपादोऽन्तानमगमत् । तस्यान्तर्धानात्पुथिव्यादीनांगुणपादप्रणाशोऽभूत् । तत्प्रणाशकृतश्चशस्यानां स्नेहवैमल्यरसवीर्यविपाकप्रभावगुणपादभ्रंशः ॥ ३२ ॥ ऐसा होनेसे त्रेतायुगमें धर्मका एक पाद अन्तर्धान होगया। उसके अन्तर्धानसे पृथ्वी आदिके गुणोंमें भी एक पादकी न्यूनता उत्पन्न होगई है । पृथिवी आदिमें गुणोंके एकपाद नष्ट होनेसे औषधी, अन्न आदिकोंके स्नेह, विमलता, रस, वीर्य, विपाक प्रभाव आदि गुणोंका एकपाद नष्ट होगया ॥ ३२॥ ततस्तानिप्रजाशरीराणिहीनगुणपादीयमानगुणैश्चाहारविहारैरयथापूर्वमुपष्टभ्यमानानिअग्निमारुतपरीतानिप्रागव्याधिभिवरादिभिराक्रान्तानिअतःप्राणिनोहासमवापुरायुषःक्रमश इति ॥३३॥ जब द्रव्योंके गुणोंका एक पाद नष्ट होगया तो इन द्रव्यादिकोंके और पृथिव्यादिकोंके एकपाद गुणहीन होनेसे संपूर्ण प्र॒जागणोंके शरीरमें भी एकपाद गुणकी हीनता होगई । बब एकपाद गुणसे हीन शरीर होनेसे आहार विहारादिकोंमें भी यथाक्रम न्यूनता प्राप्त होगई तथा अग्नि और वायुके व्यतिक्रमसे पहिले. ज्वरादि रोगोंसे शरीर आक्रान्त हुआ फिर क्रमपूर्वक मनुष्योंकी आयुका भी हास होने लगा॥३३॥ भवति चात्र। युगेयुगेधर्मपादःक्रमेणानेनहीयते । गुणपादश्वभूतानामेवंलोकप्रलीयते ॥ ३४॥ यहांपर कहा है कि युगयुगमें धर्मका. एकएक पाद इसी क्रमसे क्षीण होता रहा और उसके क्षीण होनेसे पृथिव्यादिके गुणोंमें द्रव्योंके प्रभावोंमें एवम् मनुष्योंके शरीरमें क्रमसे क्षीणता होती रही ॥ ३४ ॥ संवत्सरशतेपूर्णेयातिसंवत्सरःक्षयम्। देहिनामायुषःकालेयत्रयन्मानमिष्यते ॥ ३
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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