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________________ 'विमानस्थान-अ०३. (५२३) अग्निवेशका प्रश्न। एवंवादिनभगवन्तमात्रेयमग्निवेश उवाच । उद्धृतानिखलुभगवन् ! भैषज्यानिसम्यग्विहितानिसम्यग्विचारचारितानि । अपितुखलुजनपदोद्धंसनमेकेनव्याधिनायुगपदसमानप्रकृत्याहारदेहवलसात्म्यासत्त्ववयसांमनुष्याणांकस्माद्भवतीति ॥४॥ इस प्रकार कथन करते हुए भगवान् आत्रेयजीसे अग्निवेश कहनेलगे कि हे भगवन् ! औषधियोंको भले प्रकार उखाड लिया है और विधिपूर्वक संस्कार किया हुआ है तथा उनके प्रयोगके विधानको विचारा हुआ है अथवा यों औषधियोंको भले प्रकार उखाडना तथा संस्कार करना एवंविधिवत् प्रयोग करना यह आपका उपदेश रोगोंमें हितकारक होना बहुत ठीक है परन्तु मनुष्योंकी प्रकृति, आहार, देह बल, सात्म्य, सत्व और अवस्था यह सब अलग २ होतेहुए एक रोग एक समयमें जनपद (देश) को कैसे उध्वंसन ( नष्ट) कर सकताहै। सो हमारी समः झमें नहीं आया कृपया उसका कथन कीजिये ॥ ४ ॥ आत्रेयका उत्तर। । तमुवाचभगवानात्रेयः । एवमसामान्यानामभिरपिअग्निवेश! प्रकृत्यादिभिर्भावर्मनुष्याणांयेऽन्येभावाःसामान्यास्तद्वैगुण्या समानकाला:समानलिंगाश्चव्याधयोभिनिवर्तमानाजनपदमुद्ध्वंसयन्ति । तेतुखलुइमेभावाःसामान्याजनपदेषुभवन्ति । तद्यथा-वायुरुदकंदेशःकालइति ॥ ५ ॥ यह सुनकर भगवान् आत्रेयजी कहनेलगे कि हे अग्निवेशायद्यपि सव मनुष्योंके प्रकृति आदि भाव समान नहीं होते अर्थात् एकसे दूसरे मनुष्यके स्वभाव आदिक अलग २ होतेहैं । जैसे-कोई मनुष्य शीत प्रकृतिवाला, कोई उष्ण प्रकृतिवाला । पर मनुष्योंके प्रकृति मादि भाव समान न होनेपर भी इनसे पृथक् जो अन्य सामान्य भाव हैं उनकी विगुणतासे अर्थात उनके बिगडजानेसे समानकालमें समानलक्षणों वाली व्याधिये प्रगट होकर देशको नष्ट कर डालती हैं । वह समानभाव देशमें ये होते हैं । जैसे वायु, जल, देश और काल ॥५॥ वातको अनारोग्यत्व । तत्रवातमेवंविधमनारोग्यकरंविद्यात् । तद्यथा-ऋतुविषममतिस्तिमितमतिचलमतिपरुषमतिशीतमत्युष्णमतिरूक्षमत्य
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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