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________________ १७) . "'. निदीनस्थान अंदम तथालध्वशनाद्यैश्चज्वरस्यकत्यशान्तयः . एताश्चैवज्वरश्वासहिक्कादीनांप्रशान्तयः ॥ ३० ॥ ' जैसे हलका भोजन आदि एकज्वरकी शान्तिोलिये अनेक उपाय शान्तिका रक होतेहैं। वैसे ही ज्वर, वास, हिचकी आदि अनेक रोगों में भी हलका भोजन आदि अनेक क्रियाद्वारा शान्ति होती हैं ॥ ३ ॥ सुखसाध्यासुखापाय:कालेनाल्पेनसाध्यते । साध्यतेकृच्छ्रसाध्यस्तुयत्नेनमहताचिरात् ॥ ३१॥ यातिलाशेषतांव्याधिरसाध्योयाप्यसंज्ञितः। परोऽसाध्य क्रिया सर्वाःप्रत्याख्येयोऽति वर्त्तते ॥३२॥ सुखसाध्यरोम साधारण उपाय करनेसे थोड़े ही कालमें शान्त होजाते है । कष्टसाध्य गेग अत्यन्त यल करनेपर बहुत कालमें शान्त होतेहैं। व्याप्यसाध्यरोग यद्यपि उत्तम वैद्यके द्वारा चिकित्सा कीजानपर कुछ कालके लिये थोडी शान्ति रहतीहै । परन्तु वह रोग समूल नष्ट नहीं होता । असाध्य रोग सर्व प्रकारके चिकि: साओं द्वारा शान्त नहीं होसकता। इसलिये वह प्रत्याख्येय अर्थात् त्यागदेने योग्य होता है । चिकित्सा करने योग्य नहीं होता। शा नासाध्या साध्यतायातिसाध्यायातित्वसाध्यताम् । पादापचारादेवाद्वायान्तिभावान्तरंगदाः ।। ३३ असाध्यरोग साध्य नहीं होसकते परन्तु साध्यरोगभी चिकित्सा में किसी प्रकारका अन्तर पडनेसे असाध्य होजातेहैं।। चिकित्साके पादचतुष्टयको अपचार होनेसे अथवा दैवयोगसे व्याधियां भीवान्तरको प्राप्त होजातीहै अर्थात साध्य भी असाध्य होजाती हैं । ( दैवयोगसेतो असाध्योंका भी सध्या होना संभव है) ॥ ३६॥ A FTEवैद्यको उपदेश वृद्धिस्थानक्षयावस्थादोषाणामुपलक्षयेत् सुसूक्ष्मामपिचप्री-" ज्ञोदेहाग्निबलचेतसाम् ॥३४॥ व्याव्यवस्थाविशेषान हिज्ञात्वाज्ञात्वाविचक्षणः । तस्यातस्यामवस्थायातका वैद्यको रचिते हैं कि दोषोंकी वृद्धि और भाणावस्थापर भले. प्रकार ध्यान रक्खे और वह बुद्धिमान् वैद्य देह,अग्निवल तथा चित्तकी वृत्चिको बहुत सूक्ष्मवि: - 1 -Delh . ....
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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