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चरकसंहिता - मा० टी०.
· साध्यांस्तुभिषजः प्राज्ञाः साधयन्तिसमाहिताः । तीक्ष्णैः संशोधनैश्चैव यथास्वं शमनैरपि ॥ १२ ॥ यदादोषनिमित्तस्यभवत्यागन्तुरन्वयः । तदासाधारणकर्मप्रवदन्तिभिषग्वराः ॥ १३ ॥ · बुद्धिमान् वैद्यको चाहिये कि साध्य अपस्मारोंको सावधान होकर तीक्ष्ण संशो-धनों द्वारा तथा उनमें जैसे उचित हों वैसे संशमनों द्वारा चिकित्सा करे । यदि उन दोषजनित अपस्मारोंमें आगन्तुज कारणों का संबंध हो तो उस समय मंत्रादि साधारण कमद्वारा शान्ति करे ॥ १२ ॥ १३ ॥
सर्वरोगविशेषज्ञः सर्वौषधाविशेषवित् । भिषक्सर्वामयान्हन्ति नचमोहंनियच्छति । इत्येतदखिलेनोक्तंनिदानस्थानमुत्तमम् १४॥ जो वैद्य संपूर्ण रोगोंको जानता है तथा संपूर्ण औषधियोंके परिज्ञानयुक्त है वह • वैद्य संपूर्ण रोगोंको नष्ट करता है और मोहको प्राप्त नहीं होता । इस प्रकार संपूर्ण- तासे इस उत्तम निदानस्थानको कथन किया है ॥ १४ ॥ एकरोगसे अनेक रोगोंकी उत्पात् ।
निदानार्थकरोरोगोरोगस्याप्युपलभ्यते । तद्यथाज्वरसन्तापाद्रक्तपित्तमुदीर्य्यते ॥ १५ ॥ रक्तपित्ताज्ज्वरस्ताभ्यांशोषश्चाप्युपजायते । प्लीहाभिवृद्धया जठरंजठराच्छोफएवच ॥ १६ ॥
. कोई रोग भी रोगके उत्पन्न करनेका हेतु होता है अर्थात् जैसे कारण रोगको उत्पन्न करता है उसी प्रकार कोई रोग भी रोगको उत्पन्न करनेवाला होता है । उसमें ष्टान्त देते हैं । जैसे- ज्वर के अत्यन्त संतापसे रक्तपित्त उत्पन्न होजाता है । रक्त: पिक्त और ज्वर- इन दोनोंके होनेसे श्वास उत्पन्न होजाता है । एवम् प्लीहा के बढ़नैसे- उदररोग उत्पन्न होता है । उदरोगसे सूजन उत्पन्न होजाती है ॥ १५ ॥ १६ ॥ अशौभ्योजठरं दुःखंगुल्मश्चाप्युपजायते । प्रतिश्यायादथोकासः कासात्संजायतेक्षयः । क्षयोरोगस्यहेतुत्वे शोषश्चाप्युपजायते ॥ १७ ॥
बवासीरसे - जठररोगकी तथा गुल्मरोगकी उत्पत्ति होती है · उत्पन्न हो जाती है। खांसी के होनेसे क्षयरोग उत्पन्न होजाता है शोष रोग उत्पन्न होजाता है ॥ १७ ॥
। प्रतिश्याय से - खांसी
| क्षयरोगके कारण