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९.४८ .४/८०४ )
चरकसंहिता - भा० टी० ।
मकालेएकस्यवाशून्यगृहवासेचतुष्पथाधिष्ठाने वासन्ध्यावेलायामप्रयतभावेवापर्वसंधिषुवामिथुन भावेरजस्वलाभिगमनें वाविगुणेवाध्ययनबलिमङ्गल होम प्रयोगनियमत्रतब्रह्मचर्य्यभङ्गेवामहाहवेवादेश कुलपुरविनाशेवा महाग्रहोपगमनेवास्त्रियाः प्रजननका लेविविधभूताशुभाशुचिस्पर्शने वावमन विरेचनरुधिरस्त्राववाशुचेरप्रयतस्यवाचैत्यदेवायतनाभिगमनेवामांसमधु
थोपवनश्मशानायतनाभिगमनेवाद्विजगुरुसुरपूज्याभिधर्षणें
तिलगुडमद्योच्छिष्टवादिग्वासासवा निशिनगरनिगमचतुष्प
वाधर्माख्यानव्यतिक्रमेवाअन्यस्य कर्मणोऽप्रशस्तस्यारम्भेवाइ
त्याघातकालाः ॥ १७ ॥
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• उन्मादके करनेवाले देवता, ऋषि, पितृगण, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, पिशाच इनका तथा गुरु, वृद्ध, सिद्ध इनका भी उन्मादके उत्पन्न करनेका समय होता है. अर्थात् यह सब भी मनुष्य में किसी प्रकारका छिद्र पाकर ही उन्माद रोगको उत्पन्न करते हैं । इनके कुपित होनेके यह समय होते हैं । पापकर्मके करनेसे अथवा पूर्वजन्मके किये पापें के फलसे - शून्य घर में अकेला देखकर, चौराहे में, दोनों संध्याओंके समय, बिना काम कहीं खाली बैठे हुए, पर्वके समय, अपवित्र समय, मैथुन के समय अथवा रजस्वलासे गमन करने के समय, या पर्वसंधियों में स्त्रीगमनके समय, अथवा पढने, बलिदान करने एवम् मंगल तथा होम कर्म करने के समय किसी प्रकारका उपद्रव कर लेनेसे, नियम, व्रत और ब्रह्मचर्यं इनमें किसी प्रकारको विगुणता होजानेके समय, घोर युद्धमें अथवा देश, कुल और नगर के विनाशके समय या किसी ग्रहण आदि महाग्रह कें आगमन के समय, स्त्रियोंके प्रसूत कालके समय एवम् अनेक प्रकारके भूत तथा अपवित्र स्पर्शके समय अथवा वमन तथा रुधिरके स्रावके समय एवम् अपवित्रावस्था में तथा बेसमय पीपल आदि देवता के वृक्ष तथा देवमंदिरमें प्रवेश करनेसे अथवा उच्छिष्ट, मांस, मधु, तिल, गुड, मद्य इनके सेवन से बिलकुल नंगा रहनके समय, रात्रि में, रास्ते में, चौराहे में, आंधी में एवम् स्मशानमें अकेला हाके समय, धर्म की मर्यादा के बिगाडनेसे अथवा अन्य कोई निंदित कर्म करने के समय उपरोक्त देवतादि आघात पाकर उन्माद रोगको उत्पन्न
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करते हैं ॥ १७ ॥