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निदानस्थान-अ०७ थोडी २ नोंदका आना, मुखपर सूजन होना और नेत्रोंका श्वेत, गिलेगिल, मलयुक्त होमा। देहका गीलासा तथा मलयुक्त रहना कफकारक द्रव्योंसे रोगका बढ़ना
और कफनाशक द्रव्योंसे रोगका शान्त होना । यह लक्षण कफजनित उन्मा: 'दके हैं ॥ ६॥
त्रिदोषलिङ्गसन्निपातेतत्सानिपातिकविद्यात्। ।
तमसाध्यामत्याचक्षतकुशलाः ॥७॥ वात, पित्त, कफ इन तीनों दोषोंके लक्षण एकसाथ मिलनेसे सन्निपातजानित उन्माद जानना । इस उन्मादको वैद्यलोग असाध्य कथन करतेहै ॥ ७॥.
साध्योंकी उपक्रमणावधि । साध्यानान्तुत्रयाणांसाधनानिभवन्ति । तद्यथा-स्नेहस्वेदवमनविरेचनास्थापनानुवासनोपशमननस्तःकर्मधूपधूमपानाञ्ज
नावपीडप्रधमनाभ्यङ्गप्रदेहपरिषेकानुलेपनवधबन्धनावरोधन. वित्रासनविस्मापनविस्मारणापतर्पणशिराव्यधनानि ॥८॥.
सन्निपातके सिवाय और वातादि दोषसे उत्पन्न हुए तीन प्रकारके उन्माद साध्य होतहैं । सो उनके यलॉको कथन करतेहैं। उनका क्रम यह है कि उन्माद रोगमें वातादि दोष भेद विचारकर स्नेहन, स्वेदन, वमन, विरेचन, आस्थापन,अनुवासन, उपशमन, नस्यकर्म, धूपन, धूम्रपान, अंजन और पीडन, प्रधमन, अभ्यंग, प्रदेह, “परिषेक, अनुलेपन, प्रहार, बंधन, अवरोधन,वित्रासन, विस्मयोत्पादन, विस्मारण, अपतर्पण, शिरावधन यह सब उचित रीतिपर यल करना चाहिये ॥८॥
भोजनविधानञ्चयथास्वंयुक्त्यायच्चान्यदपिकिञ्चिन्निदानविपरीतमौषधकार्यतत्स्यादिति ॥९॥ तथा दोषके.अनुसार युक्तिपूर्वक आहार विधिका सेवन कराना एवम् अन्य भी दोषको शान्त करनवाले जो उपाय प्रतीत हों उनको करनी चाहिये ॥९॥
तत्र श्लोकः।। उन्मादानदोषजानसाध्यानसाधयेद्भिषगुत्तमः ।
अनेन विधियुक्तनकर्मणायत्प्रकीर्तितमिति ॥ १०॥ यहां एक श्लोक है कि वात, पित्त, कफसे उत्पन्न हुए उन्माद रोगोंको बुद्धिमान वैध उपरोक्तविधि और क्रियाके अनुसार साधन करे अर्थात् साध्य उन्मादरोगोंको शान्त करे ॥ १०॥
अनेनविधियुक्तनत, पित्त, कफसे उत्पनर अर्थात् साध्य