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________________ निदानस्थान-अ०.५.. . जीसन्तानानिवहुकण्डूक्रिमीणिसक्तगतिसमुत्थानभेदीनिपरि मण्डलानिमण्डलकुष्ठानीतिविद्यात् ॥ १२ ॥ ':चिकना, भारी, ऊंचा,मृदु, दृढ तथा किनारोंपर्यंत मोटा,श्वेत और लालवर्णका बहुत वहाव करनेवाला और वह वहाव श्वेत तथा पिच्छलवर्णका लवता हो मुफेद रोमोंसे युक्त हो तथा उसमें अत्यन्त खाज होतीहो और कृमि पडे हों एवम् उसके सव मण्डल देरसे फैलनेवाले, देरमें उत्पन्न होनेवाले, तथा देरमें फटनेवाले हों इस प्रकारके गोलगोल मण्डलोंवाले कुष्ठको मण्डल कुष्ठ कहतेहैं ॥ १२ ॥ ऋष्यजितकुष्टके लक्षण। परुषाण्यरुणवर्णानिबहिरन्तःश्यावानिनीलपीतताम्रावभासा. न्याशुगतिसमुत्थानान्यल्पकण्डूक्लेदक्रिमीणिदाहभेदनिस्तोदंपाकबहुलानिशूकोपहतोपमानवेदनान्युत्सन्नमध्यानितनुप य॑न्तानिकर्कशपिडकाचितानिदर्घिपारमण्डलानिऋष्याज- . .. हाकृतीनिऋष्यजिह्वानीतिविद्यात् ॥१३॥ __ कठोर तथा लालवर्णका वाहरका भाग एवम् भीतरका भाग काला,नीला,पीला एवम् ताम्रवर्णका हो, शीघ्र फैलनेवाला हो,शीघ्र उत्पन्न होनेवाला हो,खाज,कृमि, दाह, भेद, निस्तोद यह हों एवम् अधिक पकनेवाला,सुईसी चूभनेकी पीडायुक्त, बीचका भाग आधिक ऊंचा न हो किनारें पतले हों और छोटी २ कठोर फुसियोंसे युक्त हो जिसमें लम्बे २ मण्डल हों वह मण्डल रीछकी जीभके समान हों इन सब लक्षणों युक्त कुष्ठको ऋष्यजित कुष्ठ कहते हैं ॥ १३ ॥ . . . पुण्डरीककुष्ठके लक्षण । शुक्लरक्तावभासानिरक्तपर्यन्तानिरक्तशिराराजीसन्ततान्यु: त्सेधवन्तिबहुबहलरक्तपूयलसीकानिकण्डूक्रिमिदाहपाकवन्त्या शुगतिसमुत्थानभेदीनिपुण्डरकिपलाशसंकाशानिपुण्डरीकाणीतिविद्यात् ॥ १४॥ . . . . . . . . जो कुष्ठ-सफेद तथा लालवर्णवाले अथवा गुलावीवर्णवाले हों एवम् किनारे लालवर्णके हों लालरोमयुक्त हो एवम् ऊंचे हों उनमेंसे अधिक रक्त, राध, और लसीका निकलती हों एवम् खाज, कृमि,दाह, पाक इन सवसे युक्त हों,शीघ्र फैलने और उत्पन्न होने एवम् फटजानेवाले हों और कमलके फूलकी कंकडीके समान हों इन सव लक्षणयुक्त कुष्ठको पुण्डरीक कुष्ट कहतेहैं ॥ १४ ॥ . . . .
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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