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________________ - निदानस्थान- अ० ४. .. (४४७) चण और मधुर रसयुक्त युक्तिपूर्वक वस्तिकर्म करना इनसे गुल्मरोगमें वायुकी शान्ति होती है । इस प्रकार वायुके शान्त होनेपर अथवा अल्प रहजानेपर यलपू बैंक अन्य दोषों को भी शान्त करनेका प्रयत्न करनाचाहिये । यह सामान्परूप से गुल्मोंकी चिकित्साका क्रम है ॥ २० ॥ तत्र श्लोकौ । + गुल्मिनामनिलशान्तिरुपायैः सर्वशोविधिवदाचारितव्या । मातेह्यव जितेऽन्यमुदीर्णदोषमल्पमपिकर्मनिहन्यात् ॥ २१ ॥ उसीको यहां कहते हैं के गुल्मरोग में सब तरहसे विधिपूर्वक उपायों द्वारा वायुको शान्त करे । उस वायुके शान्त होनेपर बाकी रहे दोष साधारण क्रियाद्वारा भी शान्त हो जाते हैं ॥ २१ ॥ संख्यानिमित्तरूपाणिपूर्वरूपमथापिच । दृष्टनिदाने गुल्मानामुपदेशश्च कर्मणाम् ॥ २२ ॥ इति अग्निवेशक तन्त्रे चरकप्रतिसंस्कृते गुल्मनिदानं नाम तृतीयोऽध्यायः ॥ ३ ॥ इस गुल्मनिदान नामक अध्यायमें गुल्मोंकी संख्या, निमित्त, पूर्वरूप, रूप, और गुल्म रोग चिकित्सा कर्मोंका उपदेश किया गया है ॥ २२ ॥ इति श्रीमहर्षि चरक० नि० स्था० पं० रामप्रसादुद्वैद्य • भाषाटीकायां गुल्मनिदानं नाम. तृतीयोध्यायः ॥ ३ ॥ चतुर्थोऽध्यायः । 407 प्रमेहनिदानम् । अथातः प्रमेहनिदानं व्याख्यास्यामइतिहस्माहभगवानात्रेयः । अब हम प्रमेहके निदानकी व्याख्या करते हैं । ऐसा भगवान् आत्रेयजी कथन -करने लगे । - प्रमेोंकी संख्या । त्रिदोषको पनिमित्ताविंशतिः प्रमेहविकाराः चापरेऽपरिसंख्येयाः । · तत्रयथात्रिदोषप्रकोपः प्रमेहानभिनिवर्त्तयतितथानुव्याख्यास्यामः ॥ १ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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