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________________ चरकसंहिता - भा० टी० । रक्तके दूषित होनेका कारण । तस्मिन्प्रमाणातिप्रवृत्तेपित्तंप्रकुपितं शरीरमनुसर्पद्यदैवयकत्लीहप्रभावाणां लोहितवहानांस्रोतसां लोहिताभिष्यन्द गुरूणिमुखान्यासाद्यप्रतिपद्यते तदैव लोहितं दूषयति ॥ २॥ रक्त अपने प्रमाणसे अधिक होकर और पिच कुपित होकर जव शरीरमें अनु सर्पण ( विचरण ) करते हैं फिर यकृत और प्लीहा से प्रगट हुई रक्त के बहानेवाली नाडियों का रक्त संचित होकर उन नाडियोंका मुख भारी होकर रुधिरके जमने से गिलगिलासा हो जाता है तब वह कुपित हुआ पित्त रक्तको भी दूषित करदेता है २॥ रक्तपित्तनामका कारण । (४३४ ) संसर्गीन्तली हतप्रदूषणा लोहितगन्धवर्णानुविधानाञ्च्चपित्तंलोहितमित्याचक्षते ॥ ३ ॥ रक्तके साथ पित्तका संसर्ग होनेसे और दूषिक रक्तसे रक्तको गन्ध और वर्ण होनेके कारण वह रक्तयुक्त पित्त - रक्तपित्त ऐसा कहा जाता है ॥ ३ ॥ रक्तपित्तके पूर्वरूप । तस्येमानि पूर्वरूपाणि । तद्यथा । अनन्नाभिलाघोभक्तस्यविदाहःशुक्ताम्लरसगन्धस्योद्गारश्छदैः अभीक्ष्णागमनं छर्दितस्यवीभत्सतास्वरभेदो गात्राणांसदनं परिदाहश्च मुखा सागमइव लोहलोहित मत्स्यामगन्धित्वमपिचास्यस्यरक्त हरितहारिद्रवत्वमङ्गावयवशकृन्मूत्र-स्वेदलाल शिंघानकास्य कर्णमल - पिडकानाम -- ङ्गसंवेदनालोहित नीलपीतश्यावानामर्च्चिष्मताञ्चरूपाणां स्वप्नदर्शनमभीक्ष्णमितिलोहितपित्तपूर्वरूपाणि ॥ ४ ॥ उस रक्तपित्त के यह पूर्वरूप होते हैं । जैसे- अन्नमें अरुचि, भोजनका विदाही परिपाक, कांजी और खट्टेरसकी गन्धयुक्त छर्दी तथा डकार आना, संदा छर्दका होना, वीभत्सता, स्वरभेद, अंगोंका सदन (सोनेवत् होना) छातीमें दाहजैसी होना, मुखसे । असा निकलना और मुखसे लोहा, रुधिर, आम, मछलीकीसी दुर्गंध आना, हल्दी के रंगके समान अंगों के अवयव, मल, मूत्र, पसीना, नाकका मैल, मुखकी लार, कानका मैल और पिडाकाओं का वर्ण पीला होना अथवा लाल होना और अंगोंमें पीडा होना तथा सप्न में नित्य लाल, नीले, पीले, काले प्रकाशवाले रूपोंको देखना यह सब रक्तपित्त रोगं प्रगट होने से प्रथम प्रगट ( पूर्वरूप ) होते हैं ॥ ४ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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