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________________ निदानस्थान - अ० १ (४२७) तरंगकीपिडकाका होना, गर्मीकी इच्छा होना, चिकने एवम् कफकारक पदाथास ' रोगका बढना, रुक्ष, उष्ण आदि पदार्थोंसे शान्त होना यह सब कफज्वर के लक्षण होते हैं ॥ ३१ ॥ द्वन्द्वजादिज्वरोंका निदान । विषमाशनादनशनादन्नस्य अपरिवर्तादृतुव्यापत्तेः असात्म्यागन्धोपघ्राणाद्विषोपहतस्यो दकस्य उपयोगाद्गरेभ्योगिरीणामुपश्लेषात्स्नेहस्वेदवमन विरेचनास्थापनानुवासन शिरोविरेचनानामयथावत्प्रयोगात्स्त्रीणाञ्चविषमप्रजननात् प्रजातानाञ्च मिथ्योपचाराद्यथोक्तानाञ्च हेतूनां मिश्री भावाद्यथानिदानं द्वन्द्वानामन्यतमः सर्वेवात्रयोदोषायुगपत्प्रकेापमापद्यन्ते ॥ ३२ ॥ विषम भोजन करनेसे, ऋतुओंके परिवर्तनसे, ऋतुओंके विगड- से, असात्म्य गंधके सूंघनेसे, विषैले जलके पनिसे, गर (गरसंज्ञक विष ) विकारसे, पहाडों के समीपतासे, स्नेहन, स्वेदन, वमन, विरेचन, आस्थापन, अनुवासन और शिरो विरेचन इन सबके मिथ्यायोग होनेसे, स्त्रियोंके बेसमय प्रसव होनेसे अथवा प्रस• वके समय कुपथ्य होजाने से एवम् ऊपर कहे हुए वात, पित्त, कफ, इनमेंसे दों दोषों के कारणोंके मिलनेसे दो दोष कुपित होते हैं और तीनों दोषोंके कोप कारक कारणोंके मिलजानेसे तीनों दोष एकही कालमें कुपित होतेहैं ॥ ३२ ॥ द्वन्द्वजादिज्वरों के लक्षण | तेप्रकुपितास्तयैवानुपूर्व्याज्वरमभिनिर्वर्त्तयन्ति तत्रयथोक्तानां ज्वरलिङ्गानांमिश्री भावविशेषदर्शनाद्द्द्वान्द्विकमन्यतमंज्वरं सान्निपातिकंवाविद्यात् ॥ ३३ ॥ कुपित हुए दोष क्रमपूर्वक इन्द्रजज्वरको अथवा सन्निपातज्वरको उत्पन्न करते हैं दो दोष कुपित हुए इन्द्रजज्वरको उत्पन्न करते हैं। तीनों दोष कुपित होनसे सन्निपात ज्वर उत्पन्न होताह । दो दाषाक लक्षण मिलनेसे इन्द्रज (द्विदोषज ) ज्वर जानना और तीनों दोषों के लक्षण मिलनेस त्रिदोषज्वर जानना चाहिये ॥ १३ ॥ आगन्तुज्वरका कारण व उसमें दोषात्पाते । अभिघाताभिषङ्गाभिचाराभिशापेभ्यआगन्तुर्व्यथापूर्वोज्वरोऽमोभवति । सकञ्चित्कालमागन्तुः केवलो भूत्वापश्चाद्दोषैरनुबध्यते ।
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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