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सूत्रस्थान - अ० ३०. ( ४१५ ) :- जैसे-झुंड मकड़ीके तारोंसे जकडा जानेपर कुछ नहीं बोल सकता और जैसे नीच जातिका मनुष्य अपने आपको ब्राह्मण बताकर फिर बहुत से लोगों में नीच जाति प्रगट होजानेपर कुछ नहीं कहसकता एवम् जैसे- बुड्डा नेवला रस्सियोंसे जकडा जानेपर चुपका बैठा रहता है उसी प्रकार ढोंग मारनेवाला मूर्ख वैद्य भी विद्वान वैद्यको देखकर अपने छलके प्रगट होनेके भयसे भीत हुआ मूढ बनाबैठा रहताहै ॥ ७० ॥
सद्वृत्तैर्नविगृह्णीयाद्भिषगल्पश्रुतैरपि । हन्यात्प्रश्नाष्टकेनादावितरांस्त्वात्समानिनः ॥ ७१ ॥ दम्भिनोमुखराह्यज्ञाः प्रभूता बद्धभाषिणः ॥ ७२ ॥
यदि थोडा मढा हुआ वैद्य भी शुद्ध और पवित्र आचरणवाला हो तो बुद्धिमानको चाहिये, प्रश्नाष्टक द्वारा हराने का यत्न न करे । परन्तु मूर्ख, पाखंडी, बक· वादी, चपल और अभिमानी इनको तो प्रथम ही प्रश्नाष्टकद्वारा हतबुद्धि वनादेना चाहिये ॥ ७१ ॥ ७२ ॥
प्रायः प्रायेण सुमुखाः सन्तोयुक्ताल्पभाषिणः । तत्त्वज्ञानप्रकाशार्थमहंकारमनःश्रिताः ॥ ७३ ॥ स्वल्पाधाराज्ञ मुखरान् दशैंयुर्नविवादिनः ॥ परोभूतेष्वनुक्रोशस्तत्वज्ञानेपरावया । येषां तेषामसद्वादनिग्रहेनिरतामतिः ॥ ७४ ॥
प्रायः श्रेष्ठ मनुष्य विनयको ग्रहण करके युक्तियुक्त बहुत थोडा और मीठा बोलनेवाले होते हैं । वह एकाधवातके जाननेवाले मूखोंसे विवाद करके अपने आपके बडा दिखाना नहीं चाहते क्योंकि वह महात्मा अहंकाररहित होकर तत्त्वज्ञान के प्राप्त करनेके लिये अथवा तत्वज्ञानका प्रकाश करनेके लिये सद्वृत्तिका अवलम्बन करते हैं । सम्पूर्ण जीवापरं परमदया करनेमें तथा तत्वज्ञानमें जिनकी बुद्धि लगीहुई है वह लोग झूठे बकवादको खण्डन करने या उससे अलग रहने में दत्तचित्त • रहते हैं ॥ ७३ ॥ ७४ ॥
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असत्पक्षाक्षणित्वार्त्तिदम्भपारुष्यसाधनाः ॥ ७५ ॥ भवन्त्यनाप्ताः स्वेतन्त्रेप्रायः परविकत्थनाः ॥ तत्कालपाशसदृशान्वर्ज-: येच्छास्त्रदूषकान् ॥ ७६ ॥ .
झूठे पक्षका अवलम्बन करनेवाले पाखण्डी, कठोर प्रकृतिवाले, रपाई निन्दा करने -वाले इस शास्त्र से कुछ भी लाभ नहीं उठासकते । अर्थात् ऐसे दुष्टोंको यह शास्त्र