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________________ 'सूत्रस्थान- म०९. अग्निवेशका प्रश्न । एवंवादिनभगवन्तमात्रेयमग्निवेशउवाचभगवन् । तेकथमस्माभिवेदितव्याभवेयुरिति ॥४॥ इस प्रकार कहतेहुए भगवान् आत्रेयजीसे अग्निवेश कहनेलगे कि हे भगवन् ! हम इन दोनोंको किस प्रकार जानसकते हैं अर्थात् इन दोनोंके जाननेका क्पा उपाय है ॥ ४ ॥ सदैद्यके लक्षण। भगवानुवाचयइमेकुलीनाः पर्यवदातश्रुताः परिदृष्टकर्माणो दक्षाः शुचयोजितहस्ताजितात्मानःसर्वोपकरणवन्तःसर्वेन्द्रियोपपन्नाःप्रतिज्ञाःप्रतिपत्तिज्ञास्ते प्राणिनामभिसराहन्तारो रोगाणांतथाविधाहिकेवलेशरीरज्ञानेशरीराभिनिवृत्तिज्ञानेप्र.. कृतिविकारज्ञानेच निःसंशयाः सुखसाध्यकच्छ्रसाध्ययाप्यप्रत्याख्येयानाश्चरोगाणांसमुत्थानपूर्वरूपलिङ्गवेदनोपशयविशेषविज्ञानेव्यपगतसन्देहाःत्रिविधस्यायुर्वेदसत्रस्यससंग्रहव्याकरणस्यसत्रिविधौषधग्रामस्यप्रवक्तारः ॥ ५ ॥ यह सुनकर भगवान् आत्रेयजी कहनेलगे कि जो वैध कुलीन, अनुभवसम्पन्न, शास्त्रज्ञ, दृष्टकर्मा, चतुर, पवित्र, सिद्धहस्त, जितात्मा औषधादि सब उपकरण संयुक्त, सर्वेन्द्रियसम्पन्न तथा प्रकृतिका जाननेवाला होताहै उसको प्राणाभिसर अर्थात प्राणरक्षक वैद्य कहते हैं तथा शारीरिक सम्बन्धमें पूर्णज्ञानी शरीरनाशक रोग तथा द्रव्योंका जाननेवाला, शरीरके उत्पत्तिकारक पदार्थोंको जाननेवाला, प्रकृतिके ज्ञानके विषयमें निःसंशय हो तथा सुखसाध्य, कष्टसाध्य, याप्यसाध्य, और असाध्य रोगोंके कारण, पूर्वरूप, रूप, वेदना और उपशय इनके ज्ञानविशेपमें संदेहरहित एवम् हेतु लक्षण औषधेि इस त्रिविध आयुर्वेदसूत्रके संग्रह भौर व्युत्पात्री एवम् त्रिविध औषधके जाननेमें यथार्थज्ञानी हो उसको प्राणाभिसर रोगहन्ता वैद्य कहते हैं ॥ ५ ॥ पञ्चत्रिंशतश्चमूलफलानांचतुणांमहास्नेहानांपञ्चानांलवणानामष्टानाञ्चसूत्राणामष्टानाञ्चमूत्राणामष्टानाञ्चक्षीराणांक्षारत्वक्वृक्षाणाञ्चषण्णांशिरोविरोचनादेश्चपञ्चकमाश्रियस्योष
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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