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________________ (३७४) चरकसंहिता-भा० टी०॥ त्तिमार्दवमापादयतिक्लेदयतिजरयतिमुखपरिणामितामाशुव्य वायिताचाहारस्योपजनयतीतिः॥ ३२० ॥ अब अनुपानके गुणोंको कहते हैं:-अनुपान-तर्पणकारक, प्राणदायक, बलव: देक, भोजनको अवसादनकर्ता तथा भोजनके संघातको भेदनकर्ता, मृदुताकारक, क्लेदकारक, पाचनकर्ता, आहारके परिणामको सुखावह करनेवाला तथा किये हुए भोजनको शीघ्र फैला देनेवाला होता है ।। ३२० ॥ तत्रश्लोकाः। अनुपानंहितंयुक्तर्पयत्याशुमानवम् । सुखंपचतिचाहारमायुषेचबलायच ॥ ३२१ ॥ यहां कहाजाताहै कि युक्तिपूर्वक अनुपान किया हुआ मनुष्यको शीघ्र पूर करता है तथा हितकारक है एवम् सुखपूर्व आहारको पचानेवाला, आयुवर्द्धक और बलदायक होता है ॥ ३२१॥ जलपानका निषेध । नोडमारुताविष्टानहिक्कावासकासिनः। नगीतभाषाध्ययनप्रसक्तानोरसिक्षताः ॥३२२ ॥ पिबेयुरुदकंभुक्त्वातद्धिकण्ठोरसिस्थितम् । स्नेहमाहारजहत्वाभूयोदोषायकल्पते ॥ ३२३ ॥ , उद्धांगगत वातवालोंको हिचकी तथा श्वास और खांसीवालोंको एवम् जिनकों गायन और भाषण एवम् अध्ययन इनका अधिक काम पडता हो तथा उरक्षत रोगवालोंको भोजनके अनन्तर पानी नहा पीना चाहिये क्योंकि इन पुरुषोंको भोजनके अनन्तर पानी पीनेसे वह पानी कण्ठ और वक्षस्थलमेंसे होकर आहारके स्नेहको . नष्ट कर दोषोंको कुपित करता है ॥ ३२२ ॥ ३२३ ॥ उपसंहार। - अनुपानकदेशोऽयमुक्तःप्रायोपयोगिकः ॥ द्रव्यन्तुनहिनिर्देष्टुंशक्यं. छत्स्नेननामभिः ॥ ३२४ ॥ यथानामोषधकिञ्चिद्देशजानांव.... चोयथा ॥ द्रव्यंतत्तत्तथावाच्यमनुक्तमिहतद्भवेत् ॥३२५॥ इस प्रकार आहार द्रव्य और अनुपान साधारणरूपले प्रायः उपयोगी पदार्थोंका अर्णन करदिया है।और संपूर्ण द्रव्योंका संपूर्ण नामों सहित वणन होना मुश्किल है
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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