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(३६२५) चरकसंहिता-भा० टी०।
मांसादिसिद्ध अन्न। मांसशाकवसातैलघृतमज्जाफलौदनाः।
वल्याःसन्तर्पणाहृद्यागुरवोहयन्तिच ॥ २५२ ॥ मांस, शाक, वसा (चर्वी), तैल, घृत, मज्जा एवम् फलोंके साथ सिद्ध किया हुआ अन्न बलकारक, तृप्तिकारक, हृद्य, भारी, पुष्टिकारक होताहै ॥ २५२ ॥
कुल्माषके गुण। तद्वन्माषतिलक्षीरमुद्गसंयोगसाधिताः।।
कुल्माषागुरवोरक्षावातलाभिन्नवर्चसः ॥ २५३ ॥ उसीके समान उडद, तिल,दूध, मूंग इनके संयोगसे सिद्धकिया हुआ अन्न भी उपरोक्त गुणवाला होता है । कुल्माष (गेहूं और चनेका होला)-भारी,रूक्ष वातकारक एवम् मलभेदक होताह ॥ २५३ ॥
स्विन्नभक्ष्यास्तुयेकेचित्सौप्यगोधूमयावकाः।
भिषक्तषांयथाद्रव्यमादिशेदरुलाघवम् ॥ २५४ ॥ दाल, गेहूं, युव-इनसे सिद्ध किये भोजनमें उस पदार्थके अनुसार गुरु और लाघव जानकर वैद्य कथन करे ॥ २५४ ।।
कृताकृतयूषके गुण । अकृतंकृतयूषञ्चतनुसंस्कारितरसम् ।
सूपमम्लमनम्लञ्चगुरुविद्यायथोत्तरम् ॥ २५५ ॥ विना घृत, मसालेवाला यूष एवम् घृत मसालायुक्त यूष, पतला संस्कार किया हुआ रस, खटाई युक्त दाल,खटाई रहित दाल, यह सब क्रमपूर्वक एकसे दूसरा उत्तरोत्तर भारी जानना ॥ २५५ ॥
सत्तूके गुण । . सक्तवोवातलारूक्षाबहुवर्णोऽनुलोमिनः।
तर्पयन्तिनरंसद्यःपीता:सद्योबलाश्चते ॥२५६ ॥ __ सत्तू जलमें घोलकर पिये हुए-वातकारक, रूक्ष, मलवर्द्धक,अनुलोमन,भूखे मनुः ष्यको शीघ्र तृप्त करनेवाले तथा शीघ्र बल देनेवाले होते हैं ॥ २५६ ॥
शालिधान्यका सत्तू ।। मधुरालघवःशीताःसक्तवःशालिसम्भवाः। ग्राहिणोरक्तपित्तनास्तृषाछर्दिज्वरापहाः ॥२५७ ॥ .. ...