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सूत्रस्थान - अ० २७.
(३५९ ) गुडकी अपेक्षा राव, रावकी अपेक्षा खांड और खांडकी अपेक्षा बूरा तथा इनमें पूर्वकी अपेक्षा जो जितना निर्मल होगा वह गुणमें उतना ही शतिल होता जाताहै ॥ २३४ ॥
गुडशर्करादिके गुण । . वृष्याःक्षीणक्षत हिताः सस्नेहागुडशर्कराः ।
कषायमधुराः शीताः सतिक्तायासशर्कराः ॥ २३५ ॥
गुड शर्करा ( यवनाल शर्करा, क्षीरखिस्त ) - बलकारक, क्षीण और क्षतमें हितकारी तथा स्निग्ध एवम् शुद्धदस्त लानेवाला है । यासशर्करा ( करंजवीत ) - कसैली, मधुर, शीतल, किंचित् तिक्त तथा मलको शोधन करनेवाली होती है ॥ २३५ ॥ मधुशर्कराके गुण | रूक्षावम्यतिसारघ्नीछेदनमधुशर्करा ।
तृष्णा सृपित्तदाहेषु प्रशस्ताः सर्वशर्कराः ॥ २३६ ॥
मधुशर्करा - रूक्ष, वमन और अतिसारनाशक तथा मलको छेदन करनेवाली है। सब प्रकारकी खांड प्यास, रक्तपित्त और दाह इनको शान्त करनेवाली है ॥२३६॥ शहतके भेद | माक्षिकं भ्रामरंक्षौद्रपौत्तिकमधुजातयः ।
माक्षिकंप्रवरं तेषां विशेषाद्द्भ्रामरंगुरु ॥ २३७॥
मधु - माक्षिक, भ्रामर, क्षौद्र; पौत्तिक इन भेदोंसे चार प्रकारका होता है । इन सबमें माक्षिक मधु उत्तम है और भ्रामरमधु सबकी अपेक्षा भारी है ॥ २३७ ॥ शहत के रङ्ग । माक्षिकतैलवर्णस्याच्तेच्छं भ्रामरमुच्यते ।
क्षौद्रन्तु कपिलंविद्याद्धृत वर्णन्तु पौत्तिकम् ॥ २३८ ॥
माक्षिकमधु तैल के वर्णका होता है । भ्रामर मधु श्वेत होता है। क्षौद्रमधु कापे-लवर्णका होता है । पौत्तिकमधु घृतके वर्णका होता है ॥ २३८ ॥
शहतके गुण | वातलंगुरुशीतञ्चरक्तपित्तकफापहम् ।
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सन्धातृच्छेदनं रूक्षकषायमधुरं मधु ॥ २३९ ॥
मधु -वातकारक, भारी, शीतल, रक्तपित्तनाशक, कफनाशक, सन्धानकारक, छेदक, रूक्ष, कषाय और मधुर होता है ॥ २३९ ॥