________________
(३५२) चरकसंहिता-भा० टी०।
ऐन्द्रजलका गुण । यदन्तरिक्षात्पततीन्द्रसृष्टञ्चोक्तञ्चपात्रेपरिगृह्यतेऽम्भः। तदैन्द्रमित्येववदन्तिधीरानरेन्द्रपेयंसलिलंप्रधानम् ॥ १९५॥ जो जल आकाशसे गिरताहुआ पृथ्वीपर गिरने न पाये और पात्रमें ही ग्रहण कियाजाये वह जल राजाओंके पीने योग्य सब जलोंमें प्रधान मानाजाताहै॥१९॥
ऋतुभेदसे जलके गुण । ऋतावृताविहाख्याताःसर्वएवाम्भसोगुणाः । ईषत्कषायमधुरं सुसूक्ष्मविषदंलघु ॥१९६॥ अरूक्षमनभिष्यन्दिसर्वपानीयमुत्तमम् ॥ गुर्वभिष्यन्दिपानीयंवार्षिकंमधुरंसरम् ॥ १९७ ॥ ऋतु ऋतुके भेदसे जलोंके अलग गुण कहेजातेहैं । प्रायः सामान्यतासे जल-कि, चित् कसैला, मीठा, सूक्ष्म, विशद, हलका, चिकना, अनभिष्यन्दी इन गुणोंसे युक्त सब प्रकारके जलों में उत्तम होताहै । वर्षाऋतुका जल-भारी, क्लेदकारक,मीठा और दस्तावर होताहै ॥ १९६ ॥ १९७ ॥
तनुलध्वनभिष्यन्दिप्रायःशरदिवर्षति ॥ तत्तुयेसुकुमाराः स्युः स्निग्धभूयिष्ठभोजिनः॥ १९८ ॥ तेषांभक्ष्येचभोज्येचलेह्यपे. येचशस्यते ॥ हेमन्तेसलिंस्निग्धंवृष्यंबल्यंहितगुरु॥ १७७॥ . शरदऋतुका जल-सूक्ष्म, हलका, और क्लेदराहत होताहै इसलिये यह जल सुकुमार पुरुषोंको चिकना और अधिक भोजन करनेवालोंको भक्ष्य, भोज्य, लेह्य. पदार्थों में तथा पीनमें उत्तम कहा है । हेमन्त ऋतुका जल-चिकना, वीर्यवर्द्धक, बलकारक और भारी होताहै ॥ १९८ ॥१९९ ॥ किश्चित्ततोलघुतरंशिशिरेकफवातजित् ॥ कषायमधुरंरूक्षवि- ' द्याद्वासन्तिकंजलम् ॥ग्रैष्मिकत्वनभिष्यन्दिजलमित्येवनिश्चयः ॥२००.॥ . . . . . . . शिशिरऋतुका जल-किंचित् हलका, कफ और वायुको जीतनेवाला होताहै। वसन्त ऋतुका जल--कषाय, मधुर और रूक्ष होताहै । ग्रीष्म ऋतुका.जल-क्लेदा रहित और स्वच्छ होताहै ॥ २०० ॥ .
विभ्रान्तेष्वृतुकालेषुयत्प्रयच्छन्तितोयदाः ॥ . सलिलंतत्तुदोषाययुज्यतेनात्रसंशयः ॥२०१॥