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चरकसंहिता - भा० टी० ।
अजवायन आदिके गुण ।
यवानीचार्जकश्चैवशिग्रुशालेयमृष्टकम्
॥
हृद्यान्यास्वादनीयानिपित्तमुत्क्लेशयन्तिच ॥ १६४ ॥
अजवायन, अर्जक (नाजवूं, तुलसीका भेद ) सुहांजनेकी फली, सौंफ, काली सिव- हृदयको प्रिय तथा अन्नमें स्वादके वढानेवाले होते हैं । परन्तु पित्तकों उक्लेशित करते हैं ॥ १६४ ॥
गण्डीरादिके गुण |
गण्डीरोजलपिप्पल्यस्तुम्बुरुःशृङ्गवेरिका ।
तीक्ष्णोष्णकटुरुक्षाणिकफवातहराणिच ॥ १६५ ॥
गण्डीर (सुठियासाग), जलपीपल, काला जीरा, शुंठी ये सब - तीक्ष्ण, उष्ण, कटु, रूक्ष तथा कफ, वातनाशक होते हैं ।॥ १६५ ॥
भूतृणके गुण | पुंस्त्वन्नः कटुरूक्षोष्णो भूतृणोवक्रशोधनः ॥ खराश्वाकफवातघ्नीबस्तिरोगरुजापहा ॥ १६६ ॥
भूतृण (शाक विशेष ) - पुंस्वनाशक, कटु, रूक्ष, उष्ण, और मुखशोधक होताहै । अजमोद कफ, वातनाशक, वस्तिके रोगोंको दूर करनेवाला है ॥ १६६ ॥ धनिये आदिके गुण | धान्यकंचाजगन्धाचसुमुखाश्चेतिरोचनाः ।
सुगंधानातिकटुकादोषानुक्लेशयन्ति ॥ १६७ ॥
धनिया, अजवायन, तुलसी यह सब - अत्यन्त रुचिकारक, सुगंधित, किंचित् कटु, एवम् त्रिदोषको उखाडनेवाले हैं ॥ १६७ ॥
गाजर के गुण । ग्राहीगृञ्जनकस्तीक्ष्णोवातश्लेष्मार्शसांहितः ॥ स्वेदनेऽभ्यवहाय्यैचयोजयेत्तमपित्तिनाम् ॥ १६८ ॥
गुंजन-संग्राही, तीक्ष्ण, वात, कफ एवम् अर्शरोग में हितकारक है । पसीना देनेके लिये और भोजन में इसका उपयोग करे । पित्तकी प्रकृतिवाले मनुष्यों को नहीं खाना चाहिये ॥ १६८ ॥